झांसीःअंडर-20 विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप (U-20 World Athletics Championships) में सिल्वर मेडल जीतकर भारत की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने वाली शैली सिंह (Shaily Singh) का सफर संघर्षों से भरा है. जिले के पारीछा गांव की रहने वाली 17 वर्षीय खिलाड़ी शैली सिंह इस समय राष्ट्रीय स्तर पर खेल जगत में चर्चा का विषय बनी हुई है लेकिन संसाधनों के अभाव में जिद और जुनून के सहारे आगे बढ़ने की उसकी ललक की कहानी से बहुत कम ही लोग परिचित हैं. शैली की मां को भी बचपन में दौड़ने और कूदने का शौक था लेकिन पारिवारिक और आर्थिक कारणों से वे अपनी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकीं. लेकिन जब अपने पहलवान नाना को देखकर शैली ने खेलकूद में रुचि दिखाई तो मां विनीता सिंह ने भरपूर सहयोग दिया.
मां और नाना ने किया प्रेरित
बता दें कि शैली का जन्म 7 जनवरी 2004 में झांसी के पारीछा गांव में ननिहाल में हुआ था. शैली अपनी मां और भाई-बहन के साथ पारीछा गांव में स्थित अपने ननिहाल में रहती थी. शैली सिंह का दाखिला शुरुआती दौर में गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में कराया गया. कुछ समय बाद गांव के समीप स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में उसका एडमिशन कराया गया. इस दौरान शैली ने दौड़ने और कूदने का प्रैक्टिस जारी रखा. अपने घर के सामने खेत में लकड़ियों को जमीन में गाड़कर उसके सिरे पर धोती बांधकर उस पर कूदने का प्रैक्टिस शुरू किया. इसके लिए शैली के पहलवान नाना ने उसे हमेशा प्रेरित किया. मां ने बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सिलाई का काम किया और उससे मिलने वाले रुपये से बेटी के लिए संसाधन जुटाए.
अंजू बॉबी जार्ज ने दिया प्रशिक्षण
स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही शैली का प्रदर्शन लगातार निखरता जा रहा था. स्कूल की ओर से उसने दौड़ और कूद की कई स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई. स्कूल और परिवार के लोगों की पहल पर झांसी शहर स्थित ध्यानचंद स्टेडियम में शैली ने प्रशिक्षण लेने की शुरुआत की. इसके बाद लखनऊ स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम के लिए उसका चयन हो गया. इस दौरान शैली का प्रदर्शन प्रसिद्ध एथलीट अंजू बॉबी जार्ज ने देखा और तीन साल पहले वे शैली को बेंगलुरु ले गई और अपने साथ रखकर अकादमी में प्रशिक्षण दिया.