झांसी:अंडर ट्वेटी विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लांग जम्प में सिल्वर मेडल जीतकर झांसी ही नहीं बल्कि प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है. 17 वर्षीय शैली सिंह सिर्फ एक सेंटीमीटर से गोल्ड मेडल जीतने और इतिहास रचने से चूक गई, लेकिन उन्होंने सुनहरे भविष्य के संकेत जरूर दे दिए हैं. परिवार के लोग इस उपलब्धि से बेहद उत्साहित हैं, मगर झांसी के छोटे से गांव से निकलकर अंडर ट्वेंटी विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजच पदक जीतने तक का शैली का यह सफर आसान नहीं रहा है. संसाधनों के अभाव में जिद और जुनून के सहारे आगे बढ़ने की उसकी ललक की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणादायक है. शैली की सफलता के इस सफर में उनकी मां विनीता का भी बहुत योगदान है.
शैली ने नाम किया रोशन
17 साल की इस भारतीय खिलाड़ी ने 6.59 मीटर की कूद के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया, स्वीडन की मौजूदा यूरोपीय जूनियर चैम्पियन माजा अस्काग ने 6.60 मीटर के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया.दिग्गज लंबी कूद खिलाड़ी अंजू बॉबी जॉर्ज की शिष्या शैली प्रतियोगिता के आखिरी दिन तीसरे दौर के बाद तालिका में शीर्ष पर थीं, लेकिन स्वीडन की 18 साल की खिलाड़ी ने चौथे दौर में उनसे एक सेंटीमीटर का बेहतर प्रदर्शन किया, जो निर्णायक साबित हुआ.यूक्रेन की मारिया होरिएलोवा ने 6.50 मीटर की छलांग के साथ कांस्य पदक जीता.पदकों की संख्या के मामले में इन खेलों में यह भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, जहां उसने दो रजत और एक कांस्य पदक जीता. इससे पहले हालांकि ओलंपिक चैंपियन भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा (2016) और फर्राटा धाविका हिमा दास (2018) ने 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था.
मां और नाना ने किया प्रेरित
7 जनवरी 2004 को अपने ननिहाल पारीछा में पैदा होने वाली शैली सिंह का जीवन अभावों से संघर्ष करके आगे बढ़ने की कहानी है. पिता की उपेक्षा के चलते मां विनीता ने ही शैली और अन्य दो बच्चों का लालन-पालन कपड़ों की सिलाई करके किया. शैली के मामा बताते हैं कि उसे दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद में बचपन में ही रुचि थी. इतना ही नहीं शैली की मां को भी बचपन में दौड़ने और कूदने का शौक था लेकिन पारिवारिक और आर्थिक कारणों से वे अपनी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकीं. लेकिन जब अपने पहलवान नाना को देखकर शैली ने खेलकूद में रुचि दिखाई तो मां विनीता सिंह ने भरपूर सहयोग दिया. शैली ने बचपन से ही स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया था, लेकिन उस वक्त उसके पास खेलने लायक अच्छे जूते भी नहीं होते थे.
लगन के दम पर हासिल किया मुकाम
गांव में रहने वाले शैली के मामा बृजेन्द्र सिंह ने शैली के जीवन के शुरुआती दौर के संघर्ष और मेहनत के बारे में बताते हैं कि शैली सिंह का दाखिला शुरुआती दौर में गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में कराया गया था. वहां पढ़ने के बाद गांव के समीप स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में उसका एडमिशन कराया गया, जहां से उसने कक्षा आठ तक की पढ़ाई की है. इस दौरान शैली ने दौड़ने और कूदने की प्रैक्टिस जारी रखी. शैली के मामा बृजेन्द्र सिंह शैली के जीवन के शुरुआती दौर के संघर्ष को बताते हुए भावुक होते हुए कहते हैं कि उसमें बचपन से ही लगन थी, जिसके दम पर उसने यह मुकाम हासिल किया है. अब पूरा गांव इस बात का इंतजार कर रहा है कि शैली झांसी आये तो उसका भव्य स्वागत किया जाए.
शैली के मामा ने बताया कि शैली को उसके पहलवान नाना ने हमेशा प्रेरित किया. मां ने बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सिलाई का काम किया और उससे मिलने वाले रुपये से बेटी के लिए संसाधन जुटाए. शैली को शुरू से ही दौड़ने का बहुत शौक था. वह स्कूल से आकर घर के सामने खेत में लकड़ियां लगाकर उस पर धोती बांधकर कूदा करती थी. यह सब देखते हुए हमने गांव के स्कूल में उसका एडमिशन कराया. जब वह पढ़ाई में ठीक होने लगी तो सरस्वती विद्या मंदिर में उसका एडमिशन कराया. वहां के शिक्षक उसे विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा दिलाने के लिए ले जाते थे.