झांसीः मुठभेड़ों पर खुद को शाबाशी देने वाली यूपी पुलिस के लिए अब एक एनकाउंटर गले की फांस बन गया है. मामला जिले के पुष्पेंद्र यादव एनकाउंटर का है. अब जब इस एनकाउंटर पर कई सवाल उठ रहे हैं तो पुलिस के हाथ पांव फूल गए हैं. सवाल जनता ही नहीं बल्कि विपक्ष भी इस एनकाउंटर पर सरकार को माफ करने के मूड में नहीं है.
पुष्पेंद्र यादव एनकाउंटर पर उठे सवाल. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते आदित्यनाथ योगी ने अपराधियों के लिए दो जगहें निर्धारित कर दी थीं. जाहिर थी या तो जेल या फिर एनकाउंटर में मौत. पिछले ढाई साल से यूपी पुलिस ने खूब गोलियां चलाईं. एटीएस ने जो मारे सो अलग, लेकिन रह-रह कर पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठे. मानवाधिकार आयोग से लेकर विपक्ष तक सरकार को घेरने की कोशिश की लेकिन मुख्यमंत्री योगी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. पुलिस नहींं की कोई प्रेस रिलीज
यूपी की सुपर कॉप पुलिस ने 5 और 6 अक्टूबर की दरमियानी रात जुर्म के एक्शन पर रिएक्शन की ऐसी गाथा लिखी जिसकी तारीफ तो बनती है भई. इस बहादुर पुलिस पर हमें गर्व है और हो भी क्यों न. वारदात को 12 घंटे भी नहीं बीते और सरकारी गोली ने आरोपी का टिकट काट दिया, लेकिन सूबे में हुए बाकी एनकाउंटर की तरह इस एनकाउंटर का पुलिस ने नगाड़ा नहीं बजाया गुडवर्क था, लेकिन पीठ नहीं थपथपाई, न मीडिया बुलाई गई, न कोई खैर खबर, न कोई प्रेस रिलीज और न ही तस्वीरबाजी का कार्यक्रम. गीता में लिखी वो बात याद आ गई कर्म कर फल की इच्छा मत कर. पुलिस कप्तान समेत तमाम पुलिसकर्मियों को इस वीरता पर बधाइयां.
अपनी निजी कार से SHO पेट्रोलिंग पर थे
तो क्या हुआ इस बार पुलिस अपनी बहादुरी का किस्सा नहीं सुना पाई. हम सुना देते हैं. पुलिस की FIR के मुताबिक SHO धर्मेंद्र सिंह चौहान अपनी निजी कार से पेट्रोलिंग पर थे. रात करीब सवा नौ बजे मोटरसाइकिल पर सवार होकर पुष्पेंद्र यादव और उसके भाई विपिन और रविंद्र बमरौली बाईपास तिराहे पर पहुंचते हैं. कार की खिड़की के पास बाइक रोक कर एक दूसरे से कहते हैं कि इसी ने अपना ट्रक पकड़ा है छोड़ना नहीं है. कहते हुए पुष्पेंद्र ने 315 बोर के तमंचे से फायर झोंक दिया. गोली कनपटी को छीलती हुई निकल जाती है.
इसी दौरान विपिन और रविंद्र भी गोली चलाते हैं. किसी तरह SHO गाड़ी से भाग कर अपनी जान बचाते हैं और पुष्पेंद्र SHO धर्मेंद्र की गाड़ी लूटकर फरार हो जाता है.इस वारदात के बाद पुलिस महकमें में अफरा तफरी मच जाती है. तमाम पुलिस फोर्स एक्टिव मुखबिर सटैंड बाई मोड में और पुलिसिया जालतंत्र ऐसा कि मानो मोबाइल नेटवर्क के सारे डंडे खड़े. रातों रात पुष्पेंद्र को ढूंढ निकाला गया. जंगल में मुठभेड़ हुई. दोनों तरफ से गोलियां चली और पुष्पेंद्र ढेर हो गया. फैसला ऑन द स्पॉट.
घर वालों ने शव लेने से कर दिया इनकार
पुलिस ने कहा कि पुष्पेंद्र के बाकी दोनों साथी अंधेरे का फायदा उठा कर फरार हो गए. पुलिस डेड बॉडी घर लाती है लेकिन पुष्पेंद्र के घर वाले डेड बॉडी लेने से इंकार कर देते हैं. अनन फानन में रात के अंधेरे में ही शव का दह संस्कार भी कर दिया जाता है. परिववालों के शव को लेने से इनकार करने के बाद भला पुलिस करती भी क्या. भले ही इस दौरान पुष्पेंद्र के परिवार की तरफ से कोई भी मौजूद नहीं था लेकिन नियमों का पूरी तरह से पालन हुआ. मजिस्ट्रेट साहब बुलाए गए.
पुलिस का लाव लश्कर मौजूद था फिर इतनी हाय तौबा क्यों. क्यों पुष्पेंद्र के परिवार वालों को कानून के इन रखवालों पर भरोसा नहीं...क्यों विपक्ष चीख रहा है कि ये एनकाउंर नहीं हत्या है, क्यों हाई लेवल जांच की मांग हो रही है. सपा मुखिया अखिलेश यादव झांसी के करगुवां गांव पहुंचे जहां उन्होंने इस पूरे मामले में पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए.