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गरीब महिलाओं और बच्चों के लिए सालों से हमदर्द बने हैं 'कपड़े वाले अंकल', आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी देती हैं साथ - जीवन ज्योति संस्थान एनजीओ

झांसी के एक युवा कई सालों से गरीब, दलित बस्तियों में कपड़े और राहत सामग्री बांटते(distributing clothes in slum) आ रहे हैं. जिन्हे पाकर बच्चें और महिलाओं सभी के चेहरे खुशी से खिल जाते हैं. बच्चों इस युवा को कपड़े वाले अंकल नाम दिया है. इस मुहिम से आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी जुड़ी हुई हैं.

झांसी के कपड़े वाले अंकल
झांसी के कपड़े वाले अंकल

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 17, 2023, 8:24 PM IST

झांसी के कपड़े वाले अंकल: सालों से गरीब बस्तियों में बांट रहे कपड़े और राहत सामग्री

झांसी:जिले में एक युवा जब गरीबों और दलित बस्तियों से गुजरता है तो वहां के बच्चे-बूढ़े सभी कपड़े वाले अंकल बुलाते हुए पीछे दौड़ने लगते हैं. इस युवक को ये नाम गरीब मासूम बच्चों ने उसके नेक काम के लिए दिया है. यह युवक हर दिन किसी न किसी झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों और परिवारों को कपड़े व खाने पीने का सामान बांटते हुए नजर आता है. इस नेक काम की जानकारी आर्मी के अधिकारियों और पत्नियों को हुई, तो सबने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया है.

कपड़ों को देख बच्चों के चेहरों पर आ जाती है खुशी


12 सालों से झुग्गी-झोपड़ियों में बांट रहे कपड़ेःझांसी के हंसारी निवासी प्रदीप कुमार वर्मा एक पढ़े लिखे व्यक्ति है. वह पिछले 12 सालों से झुग्गी-झोपड़ियों वाली बस्ती में जाकर कपड़े वितरित करने काम कर रहे हैं. प्रदीप कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, वह शुरुआत में अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और आस-पास रहने वाले लोगों से उनके घर में रखे इस्तेमाल न होने वाले कपड़े मांग कर इकट्ठा करते थे. जिन्हें वह झांसी की स्लम और दलित बस्तियों में रहने वाले लोगों के दे दिया करते थे. मदद के बाद बच्चों के चेहरे पर दिखने वाली खुशी ने इस सिलसिले को जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया.

कपड़ों को देख बच्चों के चेहरों पर आ जाती है खुशी

बच्चे कपड़े वाले अंकल कहकर दौड़ते हैं पीछेःसमय बीतने के साथ प्रदीप ने जीवन ज्योति संस्थान नाम से एक एनजीओ शुरू कर दिया. आज आलम ये है कि प्रदीप हर रोज बिना छुट्टी के किसी न किसी बस्ती में जरूरतमंदों को कपड़े या फिर शिक्षा सामग्री बांटते हैं. जैसे ही प्रदीप स्लम बस्तियों में घुसते हैं, तो छोटे-छोटे बच्चे कपड़े वाले अंकल कहते हुए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ लगा देते है. मंगलवार को जिस प्रदीप झांसी के बिजौली में बनी आदिवासी बस्ती में पहुंचे थे. इस आदिवासी बस्ती में रहने वाली राजकुमारी ने बताया कि यहां लगभग तीन सौ आदिवासी परिवार कच्चे मकानों और झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं. यहां के महिला पुरुष आसपास के इलाकों में या फिर गुजरात, राजस्थान, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में मजदूरी कर अपने परिवार को पालन करते हैं. मजदूरी की कमाई से लोग सिर्फ अपने परिवार का पेट भरने की जुगाड़ ही कर पाते है. राजकुमारी ने बताया कि प्रदीप समय-समय पर और खास तौर पर सर्दी के मौसम में बच्चों-बड़े सभी के लिए गर्म कपड़े देने आते हैं. जिससे बच्चों के चेहरे खुशी से खिल जाते हैं. प्रदीप की इस सहायता से बच्चों के मां-बाप के माथे पर पड़ने वाली परेशानियों की लकीरें गायब हो जाती हैं.

प्रदीप आदिवासी बस्ती में अब तक 300 कैंप लगा चुके हैं

आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी दे रहीं साथःजीवन ज्योति संस्थान एनजीओं के डायरेक्टर प्रदीप ने बताया कि शुरुआत में उनको कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी. जैसे-जैसे उनके इस कार्य की चर्चा होने लगी वैसे-वैसे शहर के जिम्मेदारों ने भी इस मुहिम में शामिल होना शुरू कर दिया. पिछले कई महिनों से आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी इसमें बराबर सहयोग करती है. झांसी ब्रिगेडियर की पत्नी पारस बाबा, कर्नल पत्नी संगीता इसके अलावा मेजर की पत्नी वर्खा सिंह, मेजर पत्नी अलका सिंह और कर्नल पत्नी कृतिका पटेल ने प्रदीप की इस मुहिम में हिस्सा बनी हुई हैं. ये सभी अपने-अपने घरों में रखे परिवार के सदस्यों के इस्तेमाल में न आने वाले कपड़े इकट्ठा कर प्रदीप को सौंप देती हैं. इसके अलावा उनके बच्चों के खेलने बेशकिमती खिलौने जिनसे अब बच्चों ने खेलना बंद कर दिया है. वह भी गरीब बच्चों को बांटने के लिए दे देती हैं.

प्रदीप की इस मुहिस में शामिल हुई आर्मी अधिकारियों की पत्नियां

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