रानी लक्ष्मीबाई के विवाह के बारे में जानिए. झांसीःरानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी और जन्मदिन-मृत्यु के भी बारे में सभी को पता है. लेकिन आज हम आपको मनुकर्णिका से महारानी लक्ष्मीबाई बनने और इनके विवाह के बारे में बताएंगे, जो आज के ही दिन यानी 19 मई 1842 को हुई थी.
19 मई 1842 का दिन झांसी के लिए बेहद खास था. यही वह दिन था जब काशी की मनुकर्णिका (मनु) का नाम बदलकर महारानी लक्ष्मीबाई रखा गया था. उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर निवालकर से इसी दिन पानी बाली धर्मशाला के पास बने पौराणिक गणेश मंदिर में हुआ था. इस मंदिर का निर्माण उनके ससुर शिवराम भाऊ ने 1796 से 1814 के बीच कराया था.
महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार विवाह में टीके के समय लड़की का नाम बदले जाने की परंपरा है. यही कारण था मनुकर्णिका से इनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया. विवाह के बाद मनु महारानी लक्ष्मीबाई बन गई. महाराजा के निधन के बाद उन्होंने राजगद्दी संभाली और इसके बाद समय ने ऐसा खेल खेला कि महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के बाद विश्व पटल पर छा गई. महारानी लक्ष्मीबाई की 19 मई को उनके विवाह की 181 वी सालगिरह है. यह दिन महाराष्ट्र समिति धूमधाम से मनाता है. जिस गणेश मंदिर में झांसी के नरेश गंगाधर राव महारानी लक्ष्मी बाई के साथ विवाह बंधन में बंधे थे, वहां वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दौरान महारानी लक्ष्मीबाई की वैवाहिक भेषभूसा पर चित्रकला प्रतियोगिता, शाम को मेहंदी प्रतियोगिता की अलावा महिला संगीत का भी आयोजन किया जाता है. जिसमे शहर के अनेकों लोग शामिल होते हैं.
इसी मंदिर में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव की हुई थी शादी. महाराष्ट्र समाज के पुरोहित गजानन खानवलकर ने बताया कि मोरपंत तांबे जब बिठूर से झांसी आए तो उनको दुर्गाबाई के बड़े में ठहराया गया था. जहां उनको जनमासा दिया गया था.
वैशाख शुद्ध दशमी संवत 1899 यानी की 19 मई 1842 को महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार शाम को गणेश मंदिर में महाराजा गंगाधर राव रानीलक्ष्मी बाई के विवाह की सारी रस्में पूरी की गई. उन्होंने बताया कि 1796 और 1814 के बीच लक्ष्मीबाई के ससुर और उनके परिजनों के द्वारा झांसी में परकोटे, मुरली मनोहर मंदिर और अनेक निर्माण कार्य झांसी में कराए गए थे.
महाराष्ट्रीयन संस्थान द्वारा गणेश मंदिर में ही चलाए जा रहे एक विद्यालय की प्राचार्य उषा खानवलकर ने बताया कि रानी लक्ष्मीबाई घुड़सवारी, तीर तलवार जैसी विधाएं में निपुण थीं. अपनी सखियों को भी सिखाया करती थी. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में शिक्षक को बाई कहकर पुकारा जाता है. इसलिए इनको भी बाई कहकर ही सभी पुकारते थे. इसलिए इनका नाम लक्ष्मीबाई हो गया.
वहीं गणेश मंदिर के पास निवास करने वाले वरिष्ठ पत्रकार विकास सनाढ्य ने बताया कि महारानी के जन्म और बलिदान दिवस की तारीख तो सभी जानते हैं. इन तिथियों पर झांसी में आयोजन भी बरसों से होते चले आ रहे हैं. लेकिन उनके विवाह की तारीख विवाह का स्थान बहुत कम लोगों को पता था. उन्होंने बताया कि सन 2016 में रानी लक्ष्मी बाई के विवाह की तारीख का पता चला. इस तारीख के बारे में जानकारी उस समय हुई जब एक पुराना निमंत्रण पत्र मिला. जोकि रानी लक्ष्मीबाई और महाराजा गंगाधर राव के विवाह के समय किसी राजा के भेजा गया था. तभी से रानी लक्ष्मीबाई की शादी की सालगिरह झांसी में बड़ी धूमधाम से मनाई जाने लगी. इस दौरान झांसी में कई तरह की पेंटिंग प्रतियोगिता आयोजित होती है.
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