झांसी: झांसी से करीब 70 किलोमीटर दूर एरच कस्बा है. माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी. इसी जगह पर होलिका का दहन हुआ था. शास्त्रों व पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा त्रेतायुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. हिरण्यकश्यप को ये वरदान मिला था कि वो न तो दिन में मरेगा और न ही रात में. न उसे इंसान मार पाएगा और न ही जानवर. इसी वरदान को हासिल करने के बाद वो स्वयं को अमर समझने लगा था और लगातार उसका अत्याचार बढ़ने लगा था.
तभी राक्षसराज के घर भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ. भक्त प्रह्लाद की नारायण भक्ति से परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मरवाने के कई प्रयास किए. फिर भी प्रह्लाद बच गए. आखिरकार हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को डीकौली पर्वत से नीचे फेंक दिया. डीकौली पर्वत और जिस स्थान पर प्रह्लाद गिरे, वो आज भी मौजूद है. इसका जिक्र श्रीमद् भागवत पुराण के 9वें स्कन्ध में व झांसी गजेटियर पेज 339ए, 357 में मिलता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने की ठानी.
होलिका के पास एक ऐसी चुनरी थी, जिसे पहनने पर वो आग के बीच बैठ सकती थी. जिसको ओढ़कर आग का कोई असर नहीं पड़ता था. होलिका वही चुनरी ओढ़ प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान की माया का असर यह हुआ कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर प्रह्लाद पर आ गई. इस तरह प्रह्लाद फिर बच गए और होलिका जल गई. इसके तुरंत बाद विष्णु भगवान ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधुली बेला यानी न दिन न रात में अपने नाखूनों से डीकौली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. बुंदेलखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा है. एरच में आज भी इस परंपरा को स्थानीय निवासी फाग और गानों के साथ हर्षोल्लास से मनाते हैं.
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आज भी मौजूद पर्वत और कुंड