झांसी: बुंदेलखंड के अंचल में बसी झांसी हिन्दी भाषा और साहित्य के साधकों की धरती रही है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त से लेकर उपन्यास सम्राट बाबू वृंदावन लाल वर्मा तक ने इस धरती पर जन्म लिया और आजीवन हिन्दी भाषा की सेवा कर हिन्दी भाषा के साहित्य को समृद्ध किया. सिने संसार में मनोज कुमार पर फिल्माए गए अधिकांश देशभक्ति गीतों के रचयिता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्याम लाल राय यानी इंदीवर भी झांसी के ही रहने वाले थे. इन साहित्यकारों के अलावा भी कई नाम हैं, जिन्होंने जीवन भर हिन्दी की सेवा में कलम चलाया. समकालीन साहित्य में भी कई रचनाकार और लेखक राष्ट्रीय स्तर पर अपनी रचनाओं से न सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं बल्कि हिन्दी साहित्य को भी समृद्ध कर रहे हैं.
हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है राष्ट्रकवि और उपन्यास सम्राट की धरती
झांसी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मस्थली रही है. गुप्त का जन्म झांसी जनपद के चिरगांव कस्बे में हुआ था और साहित्य जगत में उन्होंने हिन्दी भाषा साहित्य की सेवा कर अपनी विशेष पहचान कायम की. स्वदेश प्रेम से ओत-प्रोत उनकी काव्यकृति भारत भारती से प्रभावित होकर उन्हें महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि कहकर संबोधित किया था. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के भाई सियाराम शरण भी एक स्थापित साहित्यकार रहे हैं. उपन्यास सम्राट बाबू वृंदावन लाल वर्मा का जन्म झांसी के मऊरानीपुर कस्बे में हुआ और अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण उन्होंने अपनी विशेष पहचान कायम की. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, विराटा की पद्मिनी और गढ़कुंडार उनके ऐतिहासिक उपन्यास हैं.
झांसी में ही रहे थे महावीर प्रसाद द्विवेदी
रायबरेली में जन्मे और भारतीय रेलवे में कार्यरत रहे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का भी झांसी से काफी गहरा सम्बन्ध रहा है. रेलवे की नौकरी के दौरान वह विभिन्न मंडलों में तैनात रहे और झांसी रेल मंडल में भी उनकी तैनाती रही. आचार्य द्विवेदी ने यहीं कार्यरत रहने के दौरान रेलवे की नौकरी से इस्तीफा दिया और इसके बाद लखनऊ जाकर सरस्वती पत्रिका का संपादन शुरू किया. आचार्य द्विवेदी ने झांसी के लेखकों और साहित्यकारों को खड़ी बोली हिन्दी लेखन की ओर प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
हिन्दी साहित्य की परम्परा है बरकरार
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया कहते हैं कि हिन्दी साहित्य के लिए झांसी जनपद के योगदान की महत्वपूर्णं परम्परा हमें दिखाई देती है. द्विवेदी युग जिनके नाम से जाना जाता है, ऐसे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी झांसी रेलवे में कार्यरत रहे. उनकी प्रेरणा से ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ब्रज भाषा छोड़कर मानक हिन्दी में लिखना शुरू किया. इसके अलावा बुन्देलखण्ड की धरती ने वृंदावन लाल जैसे श्रेष्ठ उपन्यासकार दिए. वर्तमान समय में मैत्रेयी पुष्पा, विवेक मिश्रा, रजनी गुप्त जैसे लेखक लगातार हिन्दी की सेवा में लगे हुए हैं.
क्रांतिकारी गीतकार इंदीवर की कहानी
झांसी के बरुआसागर में 15 अगस्त 1924 को जन्मे श्याम लाल राय उर्फ इंदीवर ने मात्र 12 साल की उम्र में जो कविता लिखी, उसके कारण अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया. हिन्दी फिल्मी गीतों की परंपरा को समृद्ध करने में इंदीवर का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है. उनके भतीजे अजीत राय कहते हैं कि 12 साल की उम्र में इंदीवर ने लिखा था 'अरे किराएदार, कर दे मकान खाली'. इसके बाद अंग्रेजों ने इन्हें एक साल के लिए जेल में डाल दिया. बाद में ये मुम्बई चले गए और लगभग 350 फिल्मों में हिन्दी के लगभग 2000 गीत लिखे. 'है प्रीत जहां की रीत सदा' और 'मेरे देश की धरती सोना उगले' जैसे तमाम देशभक्ति पूर्ण गीत भी लिखे.