झांसी : बुंदेलखंड के इतिहास, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत को वैज्ञानिक व प्रामाणिक रूप देने के मकसद से झांसी मंडल के कमिश्नर डॉक्टर अजय शंकर पांडेय ने अनूठी पहल की है. उन्होंने मंडल के तीन जिलों झांसी, जालौन और ललितपुर से संबंधित स्वर्णिम, गौरवशाली एवं ऐतिहासिक स्मृतियों के संकलन, संरक्षण, अनवेषण एवं शोध के लिए एक समिति का गठन किया है.
इसको विस्तार देने का काम भी कर रहे हैं. सरकारी और गैर सरकारी पदों पर कार्यरत लोगों को अभिरुचि के मुताबिक जिम्मेदारियां सौंपकर कमिश्नर इस समय मुख्य रूप से ग्यारह गतिविधियों पर आधारित अलग-अलग विंग की स्थापना में जुटे हैं.
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इस अनूठी पहल का मकसद यह भी है कि बुंदेलखंड की धरोहरों का रेखांकन कर उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाए. कमिश्नर कार्यालय के आदेश के बाद झांसी, ललितपुर और जालौन जनपदों को लेकर समिति के गठन के साथ ही उनसे जुड़े विंग के गठन का भी काम शुरू हो गया है. इसके तहत चार प्रमुख मानकों संकलन, अन्वेषण, संरक्षण और शोध पर काम किए जाएंगे.
प्रमुख रूप से ग्यारह गतिविधियों को चिह्नित कर ग्यारह विंग तैयार किए गए हैं. साहित्य विंग, पर्यटन विंग, व्यंजन विंग, रीति-रिवाज व परंपराओं से संबंधित विंग, ऐतिहासिक स्थल विंग, फ्लोरा एवं फना विंग, जल संरक्षण विंग, हस्तशिल्प एवं उद्योग धंधों से सम्बन्धित विंग, नृत्य, गायन, नाटक, लोककला से संबंधित सांस्कृतिक विंग, विशिष्ट कृषि उत्पाद संरक्षण विंग व पल्स ऑफ़ बुंदेलखंड विंग गठित किए गए हैं.
लोगों ने दिखाई रुचि
कमिश्नर डॉ. अजय शंकर पांडेय ने ईटीवी भारत को बताया कि बुंदेलखंड ऐतिहासिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काफी समृद्ध रहा है. हालांकि यहां की विभिन्न विधाओं को दोबारा जिंदा करने की जरूरत है. इसके लिए समिति का गठन कर ग्यारह विंग स्थापित किए गए हैं.
इसमें लोगों ने रुचि ली है और हमने संबंधित क्षेत्र के लोगों को जोड़ने का निर्देश दिया है. इसका उद्देश्य यह है कि बुंदेलखंड की धरोहरों को पूरा प्रदेश और देश जाने. इसके साथ ही इसे विश्व मानचित्र में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया जा सके.
क्या है बुंदेलखंड का इतिहास और महत्व
'बुंदेलखंड' शब्द मध्यकाल से पहले प्रयोग में नहीं आया है. इसके विविध नाम और उनके उपयोग आधुनिक युग में ही हुए हैं. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक में रायबहादुर महाराजसिंह ने बुंदेलखंड का इतिहास लिखा था. इसमें बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाली जागीरों और उनके शासकों के नामों की गणना की गयी थी. दीवान प्रतिपाल सिंह ने तथा पन्ना दरबार के प्रसिद्ध कवि "कृष्ण' ने अपने स्रोतों से बुंदेलखंड के इतिहास लिखे परन्तु वे विद्वान भी सामाजिक सांस्कृतिक चेतनाओं के प्रति उदासीन रहे.
दरअसल, उत्तर प्रदेश के दक्षिण और मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित इस क्षेत्र की सीमाएं विभिन्न राजवंशों के समय अलग–अलग तरह से निर्धारित होतीं रहीं. अधिकांश मतों के अनुसार बुंदेलखंड गंगा, यमुना के दक्षिण और पश्चिम में बेतवा नदी से लेकर पूर्व में विंध्यवासिनी देवी के मंदिर तक फैला हुआ था.
ऐसा भी माना जाता है कि इसका नाम विंध्येलखंड था जिसका अपभ्रंश होते-होते अब यह इलाका बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है. वर्तमान में बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट हमीरपुर, बांदा और महोबा तथा मध्य–प्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया जिले आते हैं.
बुंदेलखंड के प्राचीन इतिहास के संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण धारणा यह है कि यह चेदि जनपद का हिस्सा था. कुछ विद्वान चेदि जनपद को ही प्राचीन बुंदेलखंड मानते हैं.
बौद्धकालीन इतिहास के संबंध में बुंदेलखंड में प्राप्त उस समय के अवशेषों से स्पष्ट है कि बुंदेलखंड की स्थिति में इस दौरान कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ. चेदि की चर्चा न होना और वत्स, अवंति के शासकों का महत्व दर्शाया जाना इस बात का प्रमाण है कि चेदि इनमें से किसी एक के अधीन रहा होगा. पौराणिक युग का चेदि जनपद ही इस प्रकार प्राचीन बुंदेलखंड है.
चंदेलकाल में हुआ बुंदेलखंड में मूर्तिकला व वास्तुकला का विकास
चंदेल काल में बुंदेलखंड में मूर्तिकला, वास्तुकला तथा अन्य कलाओं का विशेष विकास हुआ. "आल्हा' के रचयिता जगीनक माने जाते हैं। ये चंदेलों के सैनिक सलाहकार भी थे. पृथ्वीराज से चंदेलों से संबंध भी आल्हा में दर्शाये गए हैं. सन् 1182-83 में चौहानों ने चंदेलों को सिरसागढ़ में पराजित किया था और कलिन का किला लूटा था.
कलिं को लूटने के लिए मुहम्मद कासिम, महमूद गज़नवी, शहाबुद्दीन गौरी आदि आए और विपुलधन अपने साथ ले गए. कुतुबुद्दीनएबक मुहम्मद गौरी द्वारा यहां का शासक बनाया गया था. बुंदेलखंड में कलिंग का किला सभी बादशाहों को आकर्षण का केंद्र रहा. इसे प्राप्त करने के सभी ने प्रयत्न किया.
हिन्दु और मुसलमान राजाओं में इसके निमित्त अनेक लड़ाईयां हुईं. खिलजी वंश का शासन संवत् 1377 तक माना गया है. अलाउद्दीन खिलजी को उसके मंत्री मलिक काफूर ने मारा. मुबारक के बनने पर खुसरो ने उसे समाप्त किया. कलिंजर और अजयगढ़ चंदेलों के हाथ में ही रहे.
इसी समय नरसिंहराय ने ग्वालियर पर अपना अधिकार किया. बाद में यह तोमरों के हाथ में चला गया. मानसी तोमर ग्वालियर के प्रसिद्ध राजा माने गए हैं.
बुंदेलखंड के अधिकांश राजाओं ने अपनी स्वतंत्र सत्ता बनानी प्रारंभ कर दी थी. फिर वे किसी न किसी रूप में दिल्ली के तख्त से जुड़े रहते थे. बाबर के बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर और शाहजहां के शासन स्मरणीय रहे हैं
बुंदेलों का शासन
बुंदेल क्षत्रीय जाति के शासक थे तथा सुदूर अतीत में सूर्यवंशी राजा मनु से संबंधित थे. इक्ष्वांकु के बाद रामचंद्र के पुत्र "लव' से उनके वंशजों की परंपरा आगे बढ़ाई गई. इसी में काशी के गहरवार शाखा के करतरिराज को जोड़ा गया है. लव से करतरिराज तक के उत्तराधिकारियों में गगनसेन, कनकसेन, प्रद्युम्न आदि के नाम ही महत्वपूर्ण हैं.