झांसी:वैश्विक महामारी के रूप में फैले इस कोरोना वायरस का सबसे अधिक असर होटल, टूर एंड ट्रेवल, विमानन, खानपान, निर्माण और मनोरंजन क्षेत्र पर पड़ रहा है. यही कारण है कि अब इसका असर एक चैन के रूप में दिखने लगा है. लॉकडाउन की वजह से आवाजाही बंद हो गई, जिसके चलते आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले बच्चे, जो हर दिन लोगों को खेल दिखाकर पैसा कमाते थे और खाना खाते थे, अब भूखे पेट रहने को मजबूर हैं. बच्चे भोजन की तलाश में हर रोज 21 किलोमीटर पैदल चल रहे हैं.
झांसी जिले के बिजोली रेलवे स्टेशन के पास झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले आदिवासी समाज के 6 बच्चे भोजन की तलाश में 21 किलोमीटर पैदल सफर कर झांसी शहर मुख्यालय पहुंचे. सभी बच्चों के पास नाच गाने से संबंधित एक-एक यंत्र था. वे यहां नाच गाना दिखाकर अपना पेट भरने आए थे, लेकिन कुछ समाजसेवियों ने बगैर तमाशा के उन बच्चों को खाद्य सामग्री दे दी, जिससे बच्चों के चेहरे खिल गए.तमाशा दिखाने वाले अरविंद कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले वे हर रोज ट्रेन से झांसी आते थे और यहां रेलवे स्टेशन पर तमाशा दिखाकर पैसा कमाते थे. इन पैसों से पूरे परिवार का पेट भरता था, लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से हम भूखे पेट रहने को मजबूर हैं. लॉकडाउन के दौरान इतनी दूर पैदल चलकर आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि घर में पैसा नहीं है तो कुछ करना ही पड़ेगा. बच्चों ने बताया कि आज उन्होंने लगभग 400 रुपये कमाए और कुछ राशन भी मिल गया. जब उनसे पूछा गया आपके यहां सरकारी सुविधा पहुंच रही है तो उनका जवाब था कि सिर्फ 2 दिन आए थे, जिसके बाद कोई पता नहीं है.