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झांसी: हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग, राष्ट्रपति को सौंपे जाएंगे 15 हजार विद्वानों के पत्र

हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को मान्यता देने की मांग को लेकर हिन्दी साहित्य भारती एक बड़े अभियान की शुरुआत कर रही है. यूपी सरकार के पूर्व मंत्री और साहित्यकार डॉ. रवींद्र शुक्ल ने इस संस्था की शुरुआत झांसी में की है.

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हिन्दी साहित्य भारती .

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Published : Sep 19, 2020, 4:16 PM IST

झांसी: हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को मान्यता देने की मांग को लेकर हिन्दी साहित्य भारती एक बड़े अभियान की शुरुआत करने जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और साहित्यकार डॉ. रवींद्र शुक्ल ने इस संस्था की शुरुआत झांसी में की है. इस संस्था से अब तक दुनिया के 27 से अधिक देशों के हिन्दी भाषा के लेखक और विद्वान जुड़ चुके हैं.

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग.

संस्था ने दुनिया के 50 देशों तक अपनी सदस्यता के विस्तार का लक्ष्य रखा है, ताकि संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा की मान्यता दिलाने के प्रयास को बल मिल सके. अमेरिका, फिजी, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर, त्रिनिनाद, सूरीनाम, श्रीलंका, जापान, इजरायल, कनाडा सहित कई देशों के हिन्दी भाषा के प्रोफेसर, लेखक और विद्वान बतौर संयोजक जुड़ चुके हैं. देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं से जुड़े साहित्यकारों को मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया गया है.

डॉ. रवींद्र शुक्ल के मुताबिक सबसे पहले हम यह मांग करने जा रहे हैं कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया जाए. संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारी भाषा को स्थान नहीं मिला है. हमारी भाषा को उसमें मान्यता मिलनी चाहिए. बहुत जल्द लगभग दो से ढाई हजार साहित्यकार दिल्ली में एकत्र होकर 15 हजार विद्वानों के पत्र राष्ट्रपति को सौंपेंगे. इसके अलावा हम पूरे देश में बौद्धिक वातावरण का निर्माण कर रहे हैं, जिससे हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय चेतना विकसित होकर नई पीढ़ी का निर्माण करे.

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