जौनपुर: शीतला चौकिया धाम पूर्वांचल की शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली है. इस मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पहले देवचंद माली नामक व्यक्ति ने की थी. शीतला मां की मूर्ति को पहले इब्राहिम शाह शर्की ने तोड़ दिया था और फिर इसको गोमती नदी के किनारे फेंक दिया था. हिंदू भक्त देवचंद ने इस मूर्ति को उठाकर एक मिट्टी की चौकी पर स्थापित किया. जिसके बाद इस धाम का नाम चौकिया धाम पड़ गया.
शीतला चौकिया धाम पहुंच श्रद्धालु बांधते हैं धागा.
कैसी हुई शीतला धाम की स्थापना
सिद्ध पीठ के बारे में बताया जाता है कि देवचंद माली नाम के परिवार में शीतला नाम की भक्त महिला थी. उसके पति की अल्प आयु में मृत्यु हो गई इसके बाद वह सती हो गई. उसी सती स्थल पर ईंट की चौकी तथा पत्थर रखकर पूजा-अर्चना करने लगी. इब्राहिम शाह शर्की द्वारा शीतला देवी का मंदिर तोड़ने के बाद मूर्ति को गोमती किनारे फेंक दिया था. जिसको देवचंद माली ने मिट्टी की चौकी पर स्थापित किया. इसके बाद इस धाम को चौकिया धाम कहा जाने लगा और गांव को देवचंदपुर कहा जाने लगा.
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क्या है मान्यता
शीतला चौकिया धाम पूरे पूर्वांचल में शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली है. जिसके कारण नवरात्र के मौके पर आसपास के 10 जनपदों के लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यहां के पुजारी संजय पंडा बताते हैं कि मां शीतला सातों बहनों में सबसे दुलारी है इसलिए यहां पहले दर्शन करने के बाद ही विंध्याचल और मैहर देवी को जाया जाता है तभी जाकर भक्तों की मन्नत पूरी होती है. इसी मान्यता के चलते नवरात्र में लाखों की संख्या में भक्त पहले चौकिया धाम दर्शन करते हैं फिर विंध्याचल और मेहर के लिए जाते हैं.
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मन्नत के लिए भक्त बांधते हैं धागा
शीतला चौकिया धाम में नवरात्र के मौके पर लाखों की संख्या में भीड़ होती है. यह मंदिर हर मौसम में भक्तों के लिए भरा रहता है. यहां आने वाले भक्तों अपनी मन्नत को लेकर मंदिर में एक धागा बांधा जाता है. इस धागा बांधने के बाद में माता उसकी मन्नत को पूरी भी करती है. जब मन्नत पूरी हो जाती है तो भक्त फिर धागे को खोला जाता है. इस मान्यता के चलते ही यहां आने वाले सभी भक्तों धागा बांधते हैं.