जौनपुर: कहते हैं पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, कुछ ऐसा ही कर दिखाया जिले के महाराजगंज की रहने वाली मुन्नी बेगम ने, मुन्नी बेगम की शादी 12 साल की उम्र में ही हो गई थी. बाल विवाह होने के कारण मुन्नी बेगम पढ़-लिख नहीं पाई थीं. पति के बाहर रहने पर जब मुन्नी से खत लिखने को कहा गया तो अनपढ़ होने की वजह से वो खत भी नहीं लिख पायीं, उन्होंने उसी वक्त पढ़ने की ठानी और 19 दिनों के भीतर खुद को साक्षर बना लिया.
हौसलों से भरी उड़ान
मुन्नी देवी आज बेसहारा और गरीब महिलाओं को साक्षर बनाने का काम कर रही हैं. 25 साल से मुन्नी बेगम घूम-घूमकर ऐसी महिलाओं को साक्षर करने का काम कर रही हैं जो अनपढ़ हैं. अब महिलाएं साक्षर होकर अंगूठा नहीं लगाती हैं, बल्कि अपने हस्ताक्षर करती हैं. अब तक जनपद में मुन्नी बेगम ने 25 सौ से ज्यादा महिलाओं को साक्षर कर चुकी हैं. उनके इस बुलंद हौसले के लिए 2018 में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू उन्हें सम्मानित भी कर चुके हैं.
पांच भाषाओं का ले चुकी हैं ज्ञान
मुन्नी बेगम का नाम जरूर छोटा है, लेकिन उनका काम उतना ही बड़ा है. मुन्नी बेगम ने 1997 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की तो वहीं अब बेटे के साथ ही 2017 में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल कर ली है. मुन्नी बेगम पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ जूडो-कराटे भी सीखीं और किशोरियों को इसकी ट्रेनिंग भी देती हैं. आज वह हिंदी, इंग्लिश, उर्दू , अरबी और संस्कृत भाषाओं को लिखना और पढ़ना जानती है.
गरीब और बुजुर्ग महिलाओं को कर रही है साक्षर
मुन्नी बेगम ने खुद को साक्षर बनाकर यह फैसला किया कि निरक्षर होने का दंश जो उन्हें झेलना पड़ा वह और किसी महिला को न झेलना पड़े. मुन्नी देवी महिलाओं को साक्षर करने के लिए बड़े ही अनोखे अंदाज में उन्हें घर के सामान से जोड़कर पढ़ाती हैं. महिलाओं को लिखना और पढ़ना दोनों ही रोचक लगने लगा है.
उन्होंने आसपास की बुजुर्ग अनपढ़ महिलाओं को पढ़ाना शुरू किया, लेकिन उनका कारवां यहीं नहीं रुका. उन्होंने क्षेत्र में घूमकर दलित और मुस्लिम महिलाओं को भी पढ़ाना शुरू किया. रोज सुबह स्कूटी चलाते हुए वह गांव-गांव निकल जाती हैं और गरीब और बेसहारा महिलाओं को साक्षर ही नहीं बल्कि उन्हें सबल बनाने के लिए काम करती हैं.