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जौनपुर: लॉकडाउन में मजदूर हुए परेशान, नमक-रोटी और प्याज खाकर चला रहे काम

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में लॉकडाउन के लगातार 1 महीना बीत जाने के बाद, गरीब मजदूर और छोटे काम-धंधा करने वाले लोग बहुत परेशान हैं. उनका कहना है कि सरकार से जो मदद मिल रही है वह नाकाफी है और उन्हें दूसरों की मदद पर भी निर्भर रहना पड़ता है. ऐसे में उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है.

जौनपुर में लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के सामने भूखों मरने की आई नौबत
जौनपुर में लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के सामने भूखों मरने की आई नौबत

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Published : Apr 29, 2020, 1:12 PM IST

जौनपुर:देशभर में कोरोना वायरस के बढ़ते मरीजों की वजह से आगे भी लगातार लॉकडाउन बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा गरीब, छोटे काम-धंधा करने वाले, मजदूर बहुत परेशान हैं. लॉकडाउन के 1 महीना बीत जाने बाद इन लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है. इन लोगों का कहना है कि उनके पास पैसे नहीं हैं, जिससे वह राशन खरीद सकें. कुछ लोगों का कहना है कि वह कोरोना से नहीं, बल्कि भूख से जरूर मर जाएंगे.

जौनपुर में लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के सामने भूखों मरने की आई नौबत

नमक-रोटी खाकर चला रहे काम

मछली शहर तहसील की खाकोपुर गांव में एक घरकार बस्ती है, जहां पर करीब 250 लोग झोपड़ियों में रहते हैं. ये बांस की टोकरी बनाकर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. लेकिन लॉकडाउन के कारण इन दिनों यह काम भी पूरी तरह से बंद है. अब इनके पास जीविका चलाने के लिए न तो पैसे बचे हैं और न ही इस संकट की घड़ी में परिवार का पेट भरने के लिए राशन है. सरकार जो भी मदद कर रही है वह उनके लिए नाकाफी है क्योंकि जो भी राशन मिलता है वह कुछ दिन ही चल पाता है. बाकी समय में इन्हें दूसरों की मदद पर निर्भर रहना पड़ता है.

यहां रह रहे लोगों का कहना है कि वो अनाज से केवल रोटी और चावल ही बना पाते हैं जबकि उन्हें तेल, दाल और सब्जियां खरीदने के लिए पैसे की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं है. ऐसे में वह नमक-रोटी या प्याज से किसी तरह खाकर काम चला रहे हैं. यहां रहने वाले कुछ लोग तो इतने परेशान हैं कि उनका कहना है कि वह कोरोना से नहीं बल्कि भूख से जरूर मारे जाएंगे.

इस संकट की घड़ी में बड़ी मुश्किल हो रही है. सरकार जो उनकी मदद कर रही है वह भी अधूरी है. हम बांस की मदद से टोकरियां बनाते थे, लेकिन काम बंद होने से अब उसकी भी कोई पूछ नहीं है. गांव में टोकरियों को लेकर जाते थे, लेकिन इस समय गांव वाले भगा देते हैं. इस मुश्किल दौर में न तो आवास है ना शौचालय है और ना ही कोई गैस सिलेंडर भी मिला हुआ है. सरकारी किचन से जो भी खाना आता है उससे पेट नहीं भरता है और वह भी केवल अब तक दो-तीन बार ही आया है.

- योगेंद्र, मजदूर

बड़ी मुश्किल हो रही है. अगर अगला लॉकडाउन बढ़ता है तो और मुसीबत बढ़ जाएगी. हम लोग कोरोना से नहीं मरेंगे, लेकिन भूख से जरूर मर जाएंगे.

- वीरेंद्र, स्थानीय

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