हाथरस :जिले स्थानीय स्तर पर पार्टी में कद्दावर नेता का अभाव है. सामाजिक समीकरण भी बिगड़े हुए हैं. पिछले पांच सालों में जिलाध्यक्षों के हुए विवाद से भी संगठन में कहीं न कहीं कमजोरी दिखाई दे रही है. ऐसे में जिले में बीएसपी अपना खाता खोलेगी यह कह पाना मुश्किल है. इससे पहले जिले में लगातार पांच चुनावों में बीएसपी का कब्जा रहा है. जिले की तीनों सीटों पर रामवीर उपाध्याय ने बीएसपी से जीतकर रिकार्ड बनाया हुआ है. रामवीर उपाध्याय के अलावा कोई दूसरा जिले की सभी सीट से विधायक नहीं बना है.
साल 2012 में जिले की दो सीटों पर था बीएसपी कब्जा
आपको बता दें की हाथरस जिले में तीन विधानसभा सीट हाथरस सदर, सादाबाद और सिकंदराराऊ हैं. वर्ष 1996, 2002 और 2007 में लगातार तीन बार रामवीर उपाध्याय हाथरस सदर सीट से बसपा के विधायक रहे थे. 2012 में सीट अनुसूचित जाति के खाते में जाने पर उस साल चौधरी गेंदालाल हाथरस विधानसभा सीट से और रामवीर उपाध्याय सिकंदराराऊ सीट से विधायक बने थे. वर्ष 2017 में रामवीर उपाध्याय सादाबाद विधानसभा से चुनाव लड़े थे और जीते भी हैं. अब वह पार्टी से निष्कासित हैं और उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर चुका है. जाहिर है ऐसे में जिले में बसपा की राह आसान नहीं होगी.
1996 में रामवीर उपाध्याय हाथरस सीट से पहला चुनाव बीएसपी की टिकट पर जीते थे. उन्हें 67, 337 मत मिले थे और उन्होंने बीजेपी के राजवीर पहलवान को 28, 850 मतों के बड़े अंतर से हराया था. साल 2002 के चुनाव में बसपा के रामवीर उपाध्याय को हाथरस विधानसभा सीट पर 67,925 वोट मिले थे. वहीं रालोद-भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी देव स्वरूप को 42,233 मत मिले थे. वहीं साल 2007 में बसपा के रामवीर उपाध्याय को 56,695 वोट मिले और लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. उनके विरोधी रहे रालोद के देवेंद्र अग्रवाल ने 41,285 वोट हासिल किए थे.