हाथरस: हिंदी हास्य व्यंग्य काव्य के क्षेत्र में देश व दुनिया में हाथरस का नाम रोशन करने वाले हास्य सम्राट पद्मश्री काका हाथरसी का पुण्यतिथि संगम समारोह सोमवार को काका हाथरसी स्मारक भवन पर मनाया गया. यह कार्यक्रम तो हुआ. लेकिन, इसमें लोगों की उपस्थिति काका के कद के अनुरूप नहीं थी. यहां अभी भी उनकी स्मृतियों में काम अधूरे पड़े हैं. यह अलग बात है कि खुद देश के प्रधानमंत्री ने हाल ही में संसद में मणिपुर मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में काका की कविता को कोड किया है.
नगर पालिका की अध्यक्ष श्वेता दिवाकर ने कहा कि काका एक ऐसी शख्सियत थे, जिसने हाथरस का नाम देश ही नहीं विदेशों में भी कायम रखा. हमारे प्रधानमंत्री को लोकसभा में जब कभी वहां का माहौल खुशनुमा करना होता है तो वह काका हाथरसी की कोई न कोई कविता जरूर पढ़ते हैं. श्वेता दिवाकर ने काका हाथरसी की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में लोगों की कम उपस्थिति पर अफसोस जाहिर किया और कहा कि यही कार्यक्रम यदि नाच-गाने का होता तो लोगों की मौजूदगी अधिक होती.
काका हाथरसी के नजदीक रहे साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि काका हाथरसी किसी परिचय के मोहताज नहीं. आवश्यकता है काका की स्मृतियों को उनके कद के अनरूप सजाने, संवारने और संरक्षित करने की, ताकि हाथरस आने वाले शोधार्थी, शिक्षार्थियों को काका के व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय कराया जा सके. उन्होंने काका की वह कविता पढ़ी, जिसमें उन्होंने जीवन और मौत में फर्क बताया. काका ने कहा था 'जीवन और मृत्यु में फर्क नहीं है भौत, आंख खुले तो जिंदगी, बंद होए मौत'.