हाथरस: जिले में सासनी कोतवाली इलाके के गांव रुदायन में सालों पहले रंगों के बजाय खून की होली हुई थी. तीन दशक बाद भी उस वारदात की दहशत गांव में आज भी दिखाई पड़ती है, जिस जाति के लोग इससे पीड़ित हुए थे वह आज भी होली का त्योहार नहीं मनाते हैं.
11 मार्च 1990 में होली के त्योहार पर गांव रुदायन के सभी लोग होली की मस्ती में मस्त थे. तब जाटव बस्ती में आग लगा दी गई, जिसमें 40 घर चले गए. इनमें बहुत नुकसान हुआ था, इतना ही नहीं खेत पर मौजूद दाताराम को भीड़ ने लाहा के बीच डालकर जिंदा जला दिया था. साथ ही उन्हें गोली भी मारी गई थी. इसके बाद इस पर राजनीति हुई थी. सभी दल के नेता वहां पहुंचे. काफी सालों बाद हाथरस की कोर्ट ने लोगों को सजा भी सुनाई, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट से अब सभी आरोपी बरी हो चुके हैं.
यहां नहीं मनाई जाती है होली. गांव की एक बहू ने बताया कि उसकी शादी 10 साल पहले हुई है. ससुराल आने पर उसने होली का त्योहार होते नहीं देखा. उसने बताया कि बुजुर्ग बताते हैं इस घटना के बाद से यहां होली नहीं होती. गांव की एक बुजुर्ग ने बताया कि लोगों को घरों में बंद कर आग लगा दी गई. उन लोगों को सजा सुनाई गई थी. मगर अब वह सब छूट कर आ गए हैं. उन्होंने बताया कि तब से गांव में जाटव जाति के लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं.
इस वारदात में मारे गए दाताराम के भाई हरि शंकर ने बताया कि कैसे इस घटना को अंजाम दिया गया. उन्होंने बताया कि थोड़ी-थोड़ी बातों पर लोग रंजिश मानने लगते हैं, उसी का यह नतीजा था. उन्होंने बताया कि उन लोगों को हाथरस कोर्ट से तो सजा हो गई थी, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील के बाद सभी अपने घर आ चुके हैं.
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