हाथरस: 'उस दिन वह बिटिया के साथ खेत पर घास काट रही थी. उसने अपनी बेटी को जगह -जगह इकट्ठा की हुई घास की ढेरियों को एकत्र करने को कहा था. इसी बीच चार-पांच युवक उसे बाजरे के खेत में खींच कर ले गए और जब उसने देखा तब तक वह दरिंदगी का शिकार हो चुकी थी. उसके कपड़े उतरे हुए थे, जीभ कटी हुई थी. मैं झोली फैलाती रही कि थोड़ा-सा मुंह दिखा दो, पर इन लोगों ने मुंह नहीं दिखाया. अंतिम संस्कार के समय पूरे परिवार को बिटिया से दूर रखा गया और उसको मुखाग्नि तक नहीं देने दी.' ये शब्द उस मां के हैं, जिसने हाथरस गैंगरेप कांड में अपनी बेटी खो दी.
बहुचर्चित हाथरस बिटिया प्रकरण से जुड़ा बिटिया का परिवार आज भी दर्द भरी जिंदगी जी रहा है. हालांकि यह परिवार सीआरपीएफ की कड़ी सुरक्षा में है और सीसीटीवी की निगरानी में भी है. लेकिन उसे सुरक्षा समाप्त होने पर पहली जैसी आजादी मिलेगी इस बात से भी डर ही लग रहा है. सरकार ने बिटिया के परिवार को मुआवजा के साथ-साथ परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी तथा आवास देने के वादा किया था. जिसमें से मात्र मुआवजा ही पीड़ित परिवार को मिला है. बाकी दोनों वादे पूरे करने की मांग परिवार की प्रमुखता में है, साथ ही पीड़ित परिवार न्यायालय में चल रहे केस का शीघ्र निपटारा चाहता है.
इस दर्दनाक घटना के बाद यह केस एससी, एसटी कोर्ट में चल रहा है. केस में लगातार तारीख लग रही हैं. गवाहों तथा सबूतों का परीक्षण हो रहा है. अब इस केस में एक- एक महीने लंबी तारीख में मिल रही हैं, जिससे पीड़ित परिवार इत्तेफाक नहीं रखता है. इस मामले में ईटीवी भारत ने पीड़िता के भाई से सवाल किया तो केस की लेटलतीफी का दर्द उसकी जुबान पर छलक पड़ा. बिटिया के भाई का कहना है कि उनके घर के एक फोन पर आरोपी पक्ष के एक व्यक्ति का फोन आया था लेकिन रिसीव नहीं किया, इसकी शिकायत पुलिस से कर दी है.