हाथरस: जिस समाज में बेटियों को जिन्दा रहने का हक नहीं था, पैदा होते ही दफना दी जाती थीं, उसी समाज की बेटी आज समाज के साथ-साथ देश का नाम विदेश में रोशन कर रही है. अगर इस बेटी को उस दिन दफन किये जाने के बाद उसकी मौसी ने जीवन नहीं दिया होता तो आज न तो लोक नृत्य कालबेलिया होता और न उसकी जनक जनक गुलाबो सपेरा. वह रविवार को हाथरस महोत्सव में प्रस्तुति देने आई थी.
गुलाबो सपेरा ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्हें पैदा होते ही जमीन में दफन कर दिया गया था, लेकिन मां व मौसी ने उन्हें 5 घंटे बाद जमीन खोदकर निकाल लिया था. जमीन में घंटों दफन रहने के बाद भी उनकी सांसें शायद इसलिए चलतीं रहीं क्योंकि उन्हें लोक नृत्य कालबेलिया को जन्म देना था. उन्होंने कहा कि उनकी 3-3 मां हैं. उनकी मौसी, जन्म देने वाली मां और धरती माता. उन्होंने कहा कि मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं थी, समाज का दबाव था तब भी वह धरती माता के पेट से उन्हें वापस लेकर आई थी. उन्होंने कहा समाज की कुप्रथा के खिलाफ जाकर मेरी मां का प्यार और हिम्मत ही थी जो उन्होंने 5 घंटे धरती मां के पेट में रहने के बाद भी मुझे जीवित बचा लिया. उन्होंने कहा कि हर मां अपने पेट मे पल रही बच्ची को बचा सकती हैं. कन्या भ्रूण हत्या को रोक सकतीं हैं.
गुलाबो सपेरा ने बताया कि जब वह 5- 6 महीने की थी तब पिता उन्हें अपने साथ ले जाया करते थे. तब पिता सांपों का झूठा दूध उन्हें पिला दिया करते थे. वह बीन की धुन पर सांपों को नाचते देख खुद भी ढपली और बीन की धुन पर डांस करने लगीं. जब वह 5 साल की हुई और पुष्कर मेला में डांस कर रही थी तभी सरकारी लोगों की नजर उन पर पड़ गई और आगे चलकर वह गुलाबो सपेरा बन गईं.