हाथरस: कस्बा मेंडू के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 91 पर बटुक भैरव नाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर पर रविवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है. भैरव नाथ जी का मंदिर 100 साल पुराना है. यहां के पूर्व महंत को भैरव नाथ जी ने स्वप्न दिया था. जिसके बाद जमीन की खुदाई की गई और भैरव नाथ जी की प्रतिमा को बाहर निकाली गयी थी.
भैरव नाथ जी के मंदिर में सभी की मनोकामना पूरी होती है. भैरवनाथ मंदिर का इतिहास
इस मन्दिर में आते और सच्चे मन से भैरव नाथ जी से अपनी मनोकामना मांगते हैं. उसको भैरव नाथ जी पूरा कर देते हैं. मंदिर में प्रसाद के रूप में मदिरा का सेवन भैरव नाथ जी को कराया जाता है. बताते हैं कि भैरव नाथ जी ने अपनी हाथ की छोटी उंगली से ब्रह्मा जी का शीश काट दिया था. जब देवताओं ने कहा की एक ब्राह्मण की हत्या की है. तो भैरव जी ने ब्रह्महत्या से बचने के लिए अपना सर काट दिया और वह सर काशी में जाकर गिरा.जिससे बाद ब्रह्मा जी जीवित हो गए. लेकिन जहां पर भैरव नाथ जी का सर गिरा वहां पर भैरव नाथ जी का विशाल मंदिर बनवा दिया गया. ब्रह्मा जी ने भैरव नाथ जी को काशी का कोतवाल होने का वरदान दिया है.
अंग्रेजों को भैरव मंदिरछोड़ कर जाना पड़ा
हाथरस के भैरव मंदिर का भी काशी से बहुत पुराना नाता है. 1847 में अंग्रेजों के जमाने में हाथरस के भैरव मंदिर के सामने अंग्रेज रेलवे लाइन बना रहे थे. भैरव नाथ जी नाराज हो गए और जब यहां ट्रेन पहुंची तो मंदिर के आते ही ट्रेन रुक गई. अंग्रेजों ने ट्रेन को सही करने के लिए कई सारे इंजीनियरों को बुलवाया लेकिन इंजन चालू ही नहीं हो सका.जब एक हिंदू इंजीनियर को भैरवनाथ ने रात्रि में स्वप्न दिया कि मंदिर के सामने मेडू के नाम से रेलवे स्टेशन बनाया जाए.
सुबह होते ही इंजीनियर ने मंदिर में जाकर दर्शन किए और भोग लगाकर प्रसाद चढ़ाया. मेडू रेलवे स्टेशन जल्द बनाने की बाबा से बात कही उसके बाद ट्रेन शुरू हो गई, लेकिन अंग्रेजों ने इस बात को नहीं माना. यहां के लोग बताते हैं कि रात में भैरव बाबा ट्रेन की पटरियों को उखाड़ देते थे. दिन में ट्रेन की पटरी अपने आप ही सही हो जाती थी.अंग्रेजों को यह जगह छोड़ कर जाना ही पड़ा.
जो भी लोग सच्चे मन से बाबा से कुछ मांगते हैं. उनकी हर तरीके की मुराद यहां पूरी की जाती है और बहुत दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं.
- ईष्वरीय प्रसाद, महंत
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