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Published : Aug 10, 2019, 7:36 PM IST

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4 हजार वर्ष पुराना है इस मुस्लिम त्यौहार का इतिहास, आप भी जानें

उत्तर प्रदेश के हरदोई में रमजान खत्म होने के 70 दिनों बाद बकरीद पर्व जिले में सोमवार को मनाया जाएगा. कुरबानी देने के लिए कई दिनों से बकरे की खरीददारी हो रही है. बकरीद को लेकर बकरे के दामों में भी तेजी देखी जा रही है.

हजारों साल पुराना है बकरीद का इतिहास

हरदोई: जिले मेंबकरीद की रौनक अब बजारों में देखने को मिलने लगी है. इन दिनों बकरा खरीद को लेकर भी बाजारों की रौनक बढ़ी है. इस पर्व को ईद अल अजहा के नाम से भी जाना जाता है. यह त्यौहार हर वर्ष इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जू अल हज्जा के दसवें दिन मनाया जाता है. मुस्लिमों में इन त्यौहार को सबसे पवित्र त्यौहार माना जाता है.

हजारों वर्ष पुराना है इसका इतिहास-
हजारों वर्ष पहले हजरत इब्राहीम रजा को ख्वाब आया था. उन्हें ख्वाब में कहा गया कि अल्लाह की रजा के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करो. हजरत इब्राहिम ने सोचा कि उनकी सबसे प्यारी चीज तो उनकी औलाद ही है. इसलिए उन्होंने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया. हजरत इब्राहिम को लगा की कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली.

हजारों साल पुराना है बकरीद का इतिहास
जब अपना काम पूरा करने के बाद उन्होंने पट्टी हटाई तो अपने पुत्र को अपने सामने जिंदा खड़े देखा, लेकिन बेदी पर कटा हुआ एक बकरा पड़ा था. माना जाता है कि तभी से बकरीद के मौके पर बकरे और मेमने की बलि का प्रचलन शुरू हुआ. उसी क्रम में हरदोई में भी इस पर्व को बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है. लोग 50 हज़ार के बकरों की खरीद कर उसे एक बेटे की तरह पालते हैं और बाद में उसकी बलि देते है.

बकरीद के त्यौहार का इतिहास आज से करीब 4179 वर्ष पुराना है. जब हजरत इब्राहीम को ख्वाब आया था और उन्हें अपनी सबसे अजीज चीज की कुर्बानी देने को कहा गया था. तब उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देना मुनासिब समझा. तभी कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि उनका बेटा सही सलामत उनके सामने आ गया और वहां पर एक जीव की गर्दन कटी मिली. उसी दिन से इन बकरीद के त्यौहार की शुरुआत हुई.
-अदनान हुसैन, मौलाना मुफ्ती

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