हापुड़:14 अगस्त 1947 को जब हिंदुस्तान पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था. उस समय पाकिस्तान से आए हिंदुओं के जख्म अभी तक भरे नहीं है. बंटवारे में वहां से निकलने का जो खौफनाक मंजर हिंदुस्तान आने वाले लोगों ने देखा था, वह मंजर आज तक नहीं भूल पाए हैं. ऐसी ही एक महिला हापुड़ निवासी पुष्पा देवी हैं, जो अब 96 वर्ष की हो चुकी हैं. लेकिन, बंटवारे के समय पाकिस्तान से आने पर जो खौफनाक मंजर उन्होंने देखा था, वह मंजर उन्हें आज भी याद है. जिंदगी बचाते हुए अपने भाई और बहन के साथ 15 लड़कियों को लेकर पुष्पा देवी पाकिस्तान से हिंदुस्तान आईं थी. मौत के साए का वह सफर आज भी याद कर पुष्पा देवी सहम जाती हैं.
पुष्पा देवी का जन्म 1929 में पाकिस्तान के सिवाल कोट में हुआ था. पुष्पा देवी ने अंग्रेजों के जमाने में पाकिस्तान से हाईस्कूल और इंटर किया था. आजादी के बाद हिंदुस्तान जाकर दिल्ली से एमए किया था. पुष्पा देवी के ब्रिटेन में पिता डॉक्टर थे. उनके चाचा लखनऊ में रहते थे. 14 अगस्त 1947 को बंटवारे के बाद जब पुष्पा देवी सियाल कोट से हिंदुस्तान के लिए निकली तो उनकी मां का साथ छूट चुका था. मम्मी उनके मामा के साथ थी. पुष्पा देवी बताती हैं कि सिवाल कोट में एक लड़की ने जान बचाने के लिए अपने पिता के साथ कुएं में छलांग लगा दी थी. पुष्पा देवी अपने भाई और बहन के साथ 15 लड़कियों को लेकर वहां से निकली.
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खाने के लिए रोटी नहीं थीःपुष्पा देवी बताती हैं कि खाने के लिए रोटी नहीं थी और पीने के लिए पानी भी नहीं था, चारों तरफ मारकाट मची थी. दिन में वह खेतों में छुप जाते थे और रात को अपना सफर करते थे. कई बार रास्ता भी भटके. लेकिन, किसी तरह ट्रक में सवार होकर और खच्चरों की मदद से वह बड़ी मुश्किल से कश्मीर पहुंची. पुष्पा देवी बताती हैं कि वहां से निकलने के बाद खच्चर वाला उन्हें वापस ले जा रहा था कि तभी रास्ते में सैनिक मिल गए और उन्होंने उन्हें सही रास्ता बताया, जिसके कारण उनकी जान बची और वह पाकिस्तान से हिंदुस्तान आये. लेकिन, आज सालों बाद भी पुष्पा देवी बंटवारे के बाद का वह खौफनाक मंजर याद कर सहम जाती हैं और उनकी आंखें नम हो जाती हैं. उनका कहना है कि बड़े-बड़े नेता भी वहां पर आ रहे थे. लेकिन, कोई कुछ भी नहीं कर रहा था. हिंदुओं को गाजर मूली की तरह काटा जा रहा था. चारों तरफ खून और लाशों के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. पुष्पा देवी के बेटे राजीव सचदेवा बताते हैं कि उनकी माता बचपन से ही बंटवारे के भयानक मंजर के बारे में बताती हैं कि किस तरह से वह अपनी जान बचाकर मौत के साए से निकलकर हिंदुस्तान आई थी.
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