गोरखपुर : 1 मई को पूरी दुनिया विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाती है. हालांकि इसके बावजूद तस्वीर में ज्यादा फर्क नहीं होता. मजदूरों को समर्थ और समृद्ध बनाने की सरकार की सारी योजनाएं तब धरी की धरी नजर आती हैं, जब मजदूर खुद को बेचने के लिए मजदूर मंडी में आकर खड़ा होता है लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी उसे रोजगार नहीं मिलता. वह खाली हाथ घर लौटने को मजबूर होता है.
वैसे तो सामान्य दिनों में मजदूरों का यह हाल होता है, लेकिन पिछले 2 वर्षों से तो यह दिहाड़ी मजदूर और भी कठिन जिंदगी जी रहे हैं. वर्ष 2020 में शुरू हुआ कोरोना के संक्रमण ने जहां कई महीनों तक लॉकडाउन की स्थिति पैदा की, तो वहीं एक बार फिर 2021 में इस महामारी ने दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी को काफी तबाह किया है. ईटीवी भारत ने मजदूरों पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार किया है, जो दर्शाता है कि मजदूर बेहद ही परेशान हैं.
गोरखपुर शहर के विभिन्न चौराहों पर मजदूरों की मंडी लगती है. रानीडीहा, गोरखनाथ मंदिर, असुरन बाजार, धर्मशाला बाजार, ट्रांसपोर्ट नगर है. यहां प्रतिदिन सुबह 7 बजे तक मजदूर अपने घरों से साइकिल से निकलकर पहुंचता है. कुछ तो ऑटो रिक्शा साधन से भी यहां पहुंचते हैं, लेकिन जब इन्हें इनका खरीदार नहीं मिलता तो यह और भी मायूस होते हैं. यह मजदूरी मिलने के इंतजार में बाजार में 11 से 12 बजे तक खड़े रह जाते हैं और आखिरकार निराश हो घर लौट जाते हैं. ईटीवी भारत ने जब ऐसे मजदूरों से बात की तो उन्होंने कहा, 'बड़ी मुश्किल हो गई है मजदूरी मिलनी. कोरोना में जिंदगी तबाह हो गई है. पहले बहुत कम लोग घर खाली हाथ लौटते थे, लेकिन अब तो लौटना ही मजबूरी हो गई है. एक कप चाय का पैसा कमाना मुश्किल है. ऐसे में अगर घर का कोई बीमार पड़ गया, तो उसकी दवा कैसे होगी...भगवान ही मालिक है. मजदूरी की आस में रोज बाजार आने में घर का भी पैसा खर्च हो रहा है.'