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गोरखपुर: भूत बंगला बन चुके राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूलों के बहुरेंगे दिन

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पिपराइच नगर पंचायत क्षेत्र में स्थित कन्या जूनियर हाईस्कूल बदहाल पड़ा है, जिसकी तस्वीर बदलने का बीड़ा एक शिक्षक ने उठाया है.

सामाजिक संस्थाएं भी बटा रही हैं हाथ.

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Published : Jul 31, 2019, 6:11 PM IST

गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में भूत बंगला बन चुके राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूलों के दिन बहुरने वाले हैं. सालों से शिक्षकों और बच्चों के अभाव में खंडहर हो चुके विद्यालय को बेसिक शिक्षा विभाग ने शुरू करने की पहल की तो कई शिक्षकों ने आगे आकर इसे संवारने का बीड़ा उठाया. राजकीय कन्या विद्यालय को सीधे शासन स्तर की निगरानी में चलाया जाना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों की अकर्मण्यता और अनदेखी से स्कूल खंडहर में तब्दील हो गए. इससे आसपास के बच्चे काफी दूर जाकर पढ़ने को मजबूर हो गए.

देंखे वीडियो.

इस शिक्षक के प्रयास से बदल रही स्कूल की तस्वीर-
बता दे कि गोरखपुर जिले में कुल चार राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूल हैं. अगर बात पिपराइच नगर पंचायत क्षेत्र के कन्या जूनियर हाईस्कूल की करें तो इसका भवन इस कदर जर्जर हो चुका है कि यहां बैठना भी जान जोखिम में डालना है. इसके चलते एक युवा शिक्षक ने इस स्कूल को चलाने का बीड़ा उठाया है. वह इसकी मरम्मत कार्य से लेकर यहां के जरूरी संसाधन को जुटाने में भी लगे हैं.

सामाजिक संस्थाएं भी बटा रही हैं हाथ-
शिक्षक अमित राय परिसर के अंदर पेड़ के नीचे अपनी पाठशाला लगाकर बच्चों को ककहरा ही नहीं, अंग्रेजी वर्णमाला में भी पारंगत करने की कोशिशों में जुट गए हैं. आज इस स्कूल में बच्चों की संख्या करीब 55 की संख्या हो चुकी है. साथ ही अमित राय की लगन देखकर अभिभावक भी अपने बच्चों को इस स्कूल में ला रहे हैं. यही वजह है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी बीएन सिंह भी भूत बंगला बन चुके इस स्कूल को चलाने के लिए सरकारी व्यवस्था के साथ सामाजिक संस्थाओं की मदद लेने जा रहे हैं.

स्कूल जैसा माहौल बनाना है मुश्किल-
इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अब दोपहर का मिड डे मील भी खा रहे हैं. साथ ही उन्हें बस्ते और कॉपी-किताबें भी मिल रही हैं. ये देख बच्चों के अभिभावक, आसपास के लोग और स्थानीय महिला पार्षद भी स्कूल को चलाने के लिए हर संभव प्रयास में जुटे हुए हैं. इसके साथ ही लोगों ने सरकार से भी इस मामले में गंभीर पहल करने की बात कही है, क्योंकि यहां तैनात शिक्षकों के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं. वर्तमान में स्कूल एक ढांचा मात्र है, दरवाजे-खिड़कियां है नहीं और यहां स्कूल जैसा माहौल बनाना भी बड़ी चुनौती है.

ऐसे में तब-जब हर स्कूलों के शिक्षकों को 'स्कूल चलो अभियान' के तहत अपने स्कूलों में अधिकतम दाखिला लेने का निर्देश प्राप्त हो, लेकिन यहां हो रहे प्रयास को देखकर एक कवि की लिखी दो पंक्तियां जरूर याद आती है कि 'कौन कहता है आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो'.

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