उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की अनोखी परंपरा, आज भी ज्वाला देवी को बाबा के खिचड़ी का इतंजार

बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी और अनोखी है. ऐसी मान्यता है कि मां ने खिचड़ी बनाने के लिए जल का पात्र चढ़ा दिया और बाबा गोरखनाथ खिचड़ी मांगते हुए हिमाचल की इस तलहटी में आ पहुंचे, जो तत्कालीन अचिरावती नदी का किनारा था. जिसे वर्तमान में राप्ती नदी कहते हैं. उसके घने जंगलों में बैठकर वो साधना में लीन हो गये और फिर मां ज्वाला देवी तक जाना भूल गये.

बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की अनोखी परंपरा
बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की अनोखी परंपरा

By

Published : Jan 13, 2021, 12:21 PM IST

Updated : Jan 13, 2021, 2:17 PM IST

गोरखपुरः बाबा गोरखनाथ में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी और अनोखी है. ऐसा कहा जाता है कि बाबा की खिचड़ी का इंतजार आज भी हिमाचल के कांगड़ा में स्थित मां ज्वाला देवी को है. जिनकी इजाजत के बाद गोरखनाथ खिचड़ी मांगने निकल पड़े थे. बात अनादिकाल की है, जब बाबा गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के मंदिर में गये, तो मां ने उनसे अपने यहां भोजन करने को कहा. जिसमें उन्होंने असमर्थता जताई और कहा कि इस स्थान पर मांसाहारी भोजन बनाया जाता है, जिसे वो नहीं खा सकते. वो भिक्षाटन करते हैं, उससे ही मिली चिजे खाते हैं. इसके बाद मां ने कहा कि आप जाओ भिक्षाटन में जो मिलेगा उसे लेकर आना, हम यहां खिचड़ी बनायेंगे और फिर खायेंगे. बताया जाता है कि मां ने खिचड़ी बनाने के लिए जल का पात्र चढ़ा दिया और बाबा गोरखनाथ खिचड़ी मांगते हिमाचल की इस तलहटी में आ पहुंचे, जो तत्कालीन अचिरावती नदी का किनारा था. जिसे वर्तमान में राप्ती नदी कहते हैं. उसके घने जंगलों में बैठकर वो साधना में लीन हो गये और फिर मां ज्वाला देवी तक जाना भूल गये.

आज भी ज्वाला देवी को बाबा के खिचड़ी का इतंजार

मकरसंक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाने आते हैं श्रद्धालु

प्राचीन इतिहास के विद्वानों के मुताबिक बाबा गोरखनाथ का प्रादुर्भाव नौवीं और दसवीं शताब्दी में हुआ था. लेकिन परंपरा के अनुसार उन्हें अजन्मा और अनादिकाल का माना जाता है. गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर रजवंत राव कहते हैं कि जब बाबा गोरखनाथ अचिरावती नदी के किनारे घने जंगलों में साधना में लीन हुए, तो आसपास के लोग उन्हें देखने और सुनने के लिए एकत्रित होने लगे. इस दौरान बाबा के पात्र में लोगों ने अन्नदान शुरू किया. जिसका भंडार लगने लगा. इसके बाद जब बाबा साधना से मुक्त हुए, तो भक्तों की भारी भीड़ देखकर वो अचंभित हो गये. इसी अन्नदान से उन्होंने खिचड़ी का विशाल भंडारा आयोजित किया. लोगों को भोजन के रूप में खिचड़ी का भोग कराया. जरूरतमंदों में अन्न का वितरण किया और माना जाता है कि फिर यहीं के होकर रह गये. आज उनकी ये साधना स्थली मकर संक्रांति के अवसर पर लोगों को खिचड़ी चढ़ाने के लिए प्रेरणा देती है. एक योगी के योग, तप और साधना को भी पूरी दुनिया में स्थापित करने में कामयाब होती है. बाबा गोरखनाथ की इस परंपरा को नाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी भी बखूबी बयां करते हैं. वो कहते हैं कि इस परंपरा में लोग श्रद्धा भाव से यहां खिचड़ी चढ़ाते हैं. वहीं परिसर में लगने वाले मनोरम मेले का भी आनंद महीनों तक लेने आते हैं.

बाबा गोरखनाथ

मकरसंक्रांति से 6 महीने तक का समय शुभ काम के लिए श्रेष्ठ

ऐसाकहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने दिशा में परिवर्तन करता है. यह धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर राशि में प्रवेश करने से लेकर मिथुन राशि तक 6 माह के लिए सूर्य उत्तरायण रहता है. ये समय शुभ आयोजन के लिए श्रेष्ठ माना जाता है. सूर्य के उत्तरायण होने पर रातें छोटी और दिन बड़ा होने लगता है. मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्योदय काल में पुण्य स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन लोग दाल चावल के मिश्रण से बनी खिचड़ी खाते हैं, और जरूरतमंदों में दान भी करते हैं. जिसके पीछे बाबा गोरखनाथ की अन्न दान की परंपरा को लोक स्वीकारते हैं. इस अवसर पर यहां देश-विदेश से श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाने पहुंचते रहते हैं.

गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर
Last Updated : Jan 13, 2021, 2:17 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details