गोरखपुर: मुस्लिम समाज के लिए मुहर्रम पर्व का बड़ा महत्व है. एक माह तक चलने वाले इस पर्व में तरह तरह के आयोजन होते हैं. वहीं, इसमें ताजिया का एक बड़ा महत्व होता है. जिले के सुन्नी समुदाय के इमामबाड़े जैसा दूसरा इमामबाड़ा पूरे एशिया में कहीं नहीं है. यह इकलौता ऐसा इमामबाड़ा है, जहां सोने-चांदी की आदमकद ताजिया रखी हुई है. इसका इतिहास करीब 300 साल पुराना है. इसका दर्शन करने के लिये लोगों को मुहर्रम माह में सिर्फ 10 दिनों का ही समय मिलता है. फिर इसे पूरी तरह से सुरक्षित रख दिया जाता है.
नवाब आसिफुद्दौला की बेगम भेजी थी ताजिया
बताया जाता है कि यह ताजिया अवध के नवाब आसिफुद्दौला की बेगम ने यहां भेजी थी. दूरदराज के इलाकों से लोग इस ताजिया को देखने के लिये आते हैं. वह अपनी मुरादे भी पूरी करने की जियारत करते हैं. इस ताजिया की शान में 10 दिनों तक इमामबाड़ा में विशेष आयोजन होता है. गश्ती जुलूस के साथ विशाल जुलूस भी यही से निकलता है, जो कि सांप्रदायिक सौहार्द का बड़ा उदाहरण पेश करता है. इसकी अगुवाई में हिंदू लोग भी शामिल होते हैं.
1717 में बना था इमामबाड़ा
गोरखपुर के इस इमामबाड़ा स्टेट के संस्थापक हजरत सैयद रोशन अली शाह थे. उन्होंने वर्ष 1717 में इसे बनवाया था. इमामबाड़ा स्टेट के मस्जिद और ईदगाह का निर्माण 1780 में हुआ था. इन कार्यों से मियां साहब की ख्याति बढ़ रही थी. जिसकी वजह से इसे मियां बाजार के नाम से धीरे-धीरे जाना जाने लगा. उस समय अवध के नवाब आसिफुद्दौला थे. उन्होंने 10 हजार इमामबाड़ा के विस्तार के लिए हजरत सैय्यद रोशन अली शाह को दिया. उनकी इच्छा के अनुसार रोशन अली शाह ने इमामबाड़े को विस्तार दिया. इसके बाद इमामबाड़े में आसिफुद्दौला की बेगम ने सोने-चांदी की ताजिया रखने के लिए भेजा था. आज यह वही सोने चांदी की तजिया है, जो मौजूदा समय में लोगों के आकर्षण का केंद्र है. इसी के सामने लोग अपनी तिजारत करते हैं. मन्नतें भी पूरी करने की दुआ मांगते हैं.आज के दौर में भी इस इमामबाड़ा स्टेट की शान-शौकत कायम है. लोग आज जिन्हें मियां साहब पुकारते हैं, उनका असली नाम अदनान फर्रुक अली शाह है.