गोरखपुरः जिले में मकर संक्रांति के महान पर्व पर इस मंदिर में शिव अवतारी बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है. लोकप्रियता की ये परंपरा देश ही नहीं दुनिया के तमाम देशों के पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं. नेपाल राज घराने से भी लोग यहां खिचड़ी चढ़ाने के लिए आते हैं.
गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की कहानी हिमाचल के कांगड़ा से जुड़ी है. जिसका महत्व गोरखपुर से पूरी दुनिया में फैला है. यहां हर साल मकर संक्रांति पर खिचड़ी मेला लगता है. जनवरी के महीने में प्रायः 14 जनवरी को चाहे कितनी भी ठंड हो, मकर संक्रांति पर लोग दूर दराज से खिचड़ी चढ़ाने आते हैं. ये मेला एक महीने तक चलता है. इस बार ये 15 जनवरी को पड़ रहा है. लेकिन श्रद्धालुओं का पहुंचना यहां 13 जनवरी की रात से शुरू हो जाता है. मंदिर प्रबंधन के साथ जिला प्रबंधन इस मेले की सकुशलता संपन्नता के लिए सुरक्षा के कड़े प्रबंध करता है.
इस बार कोविड को देखते हुए उसके गाइड लाइंस के मुताबिक श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलेगा. कोई भी श्रद्धालु व्यक्तिगत पॉलिथीन में खिचड़ी नहीं ला सकेगा. गोरखनाथ मंदिर और पीठ की महत्ता तो पहले से ही बड़ी थी. लेकिन इधर पांच सालों में इसकी ख्याति प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में यहां के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने जबसे संभाली और बढ़ गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां के पीठाधीश्वर हैं. इसी भूमिका में हर साल सबसे पहली खिचड़ी सुबह 4 बजे चढ़ाते हैं. उसके बाद से खिचड़ी चढ़ानी शुरू हो जाती है. इस दिन मंदिर में खिचड़ी का विशाल भंडारा भी लगता है, जिसमें आये हुए श्रद्धालु खिचड़ी खाते हैं. योगी आदित्यनाथ अपने आवास परिसर के भोजनालय में बनी खिचड़ी अपने करीबियों और साधु-संतों के बीच खाते हैं.
एक समय की बात है कि भिक्षाटन करते हुए हिमाचल के कांगड़ा जिले के ज्वाला देवी मंदिर बाबा गोरक्षनाथ पहुंचे. जहां देवी प्रकट हुई और गोरक्षनाथ को भोजन के लिए आमंत्रित किया. जब गोरक्षनाथ ने तामसी भोजन देखा तो उन्होंने कहा कि मैं भिक्षा में मिले चावल, दाल ही खाता हूं. इस पर ज्वाला देवी ने कहा कि वो चावल-दाल पकाने के लिए पानी गरम करती हैं. आप भिक्षाटन पर जाइये और चावल-दाल लेकर आइए. जिसके बाद भिक्षाटन पर निकले बाबा गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते-मांगते गोरखपुर पहुंच गये थे.
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जब वो गोरखपुर पहुंचे तो ये क्षेत्र घना जंगल था. उन्होंने अपना भिक्षा पात्र राप्ति नदी और रोहिणी नदी के संगम पर रखा और वो साधन में लीन हो गए. इसी बीच खिचड़ी का पर्व आया और एक तपस्वी को साधना करते देख लोगों ने उनके पात्र में भिक्षा डालनी शुरू कर दी. लगातार भिक्षा डालने के बाद भी ये पात्र जब नहीं भरा तो लोग इसे तपस्वी का चमत्कार मानने लगे. जिसके बाद से हर साल खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई. तब से लेकर आजतक इस मंदिर में हर साल खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. नेपाल और बिहार से भी लोग यहां खिचड़ी चढ़ाने के लिए आते हैं. लोक आस्था और अपनी मन्नतों के पूरा होने का भी श्रद्धालु इसे बड़ा केंद्र मानते हैं. अपनी मन्नत पूरी होने के बाद वह यहां खिचड़ी चढ़ाते हैं.