गोरखपुर:चैत्र रामनवमी हो या शारदीय नवरात्र. इन दोनों अवसरों पर गोरखपुर के ऐतिहासिक और देश की आजादी की क्रांतिकारी गतिविधियों की साक्षी 'तरकुलहा देवी' मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां हर दिन मेले जैसा माहौल होता है. हालांकि नवरात्रों में यहां स्थानीय ही नहीं, दूसरे प्रांतों और जिलों के लोगों का भी बड़ी संख्या में आना लगा रहता है.
गौरतलब है कि चैत्र रामनवमी की शुरुआत 2 अप्रैल से हो रही है. मंदिर साफ-सफाई के साथ भक्तों के आगमन को लेकर तैयार है. ईटीवी भारत भी अपने दर्शकों और पाठकों तक इस ऐतिहासिक मंदिर की गाथा को पहुंचा रहा है. तरकुलहा माता के मंदिर को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने में शहीद बंधू सिंह जैसे क्रांतिकारी की अहम भूमिका है. जो अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय वर्तमान के तरकुलहा मंदिर परिक्षेत्र के घने जंगलों में देवी मां के पिंडी रूप में स्थापना करके पूजा अर्चना किया करते थे.
यहीं से अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाते थे. मंदिर के पुजारी और क्रांतिकारी संदर्भ में वर्णित इस क्षेत्र के इतिहास के अनुसार जो भी अंग्रेज सिपाही इस क्षेत्र से गुजरते थे, बंधू सिंह उनका सिर कलम करके मां भगवती को भेंट कर देते थे. लगातार इस तरह की घटना से अंग्रेज काफी परेशान हो उठे थे. एक मुखबिर की सूचना पर बंधू सिंह को गिरफ्तार करने में वह कामयाब भी हो गए.
गिरफ्तारी और सजा के बाद बंधू सिंह को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर खुले तौर पर अंग्रेजी हुकूमत में फांसी दी जा रही थी. मां भगवती के अनन्य भक्त की फांसी सात बार टल गई. फांसी का फंदा बार-बार टूट जा रहा था. अंत में खुद मां भगवती से बंधू सिंह ने आह्वान किया और अपने पास बुलाने को कहा. तब जाकर आठवीं बारे में बंधू सिंह को फांसी हो पाई.