बुढ़िया माता की कृपा से नहीं होती अकाल मृत्यु, यहां मां करती हैं सबकी रक्षा
लोगों की मान्यता कि जो भक्त सच्चे हृदय से बुढ़िया माई की पूजा-अर्चना करते हैं, वह कभी असमय काल के गाल में नहीं समाता है. गोरखपुर शहर से 15 किमी पूर्व में कुसम्ही जंगल के बीचोबीच बुढ़िया माता का मंदिर स्थित है. माता की कई ऐसी पटकथाएं प्रसिद्ध हैं, जिससे उनकी महिमा का पता चलता है. आइए जानते हैं बुढ़िया माता मंदिर के बारे में...
गोरखपुर: जंगल के बीचोबीच स्थित बुढ़िया माता मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. शारदीय नवरात्रि के अलावा अन्य त्योहारों पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. यहां पर मां सफेद रंग की साड़ी में विराजमान हैं. यहां मां का 2 मंदिर है. एक प्राचीन मंदिर और दूसरा नवीन. दोनों ही मंदिरों में भक्तों की भीड़ जुटती है. प्राचीन मंदिर में जाने के लिए नाव से पोखरा पार करना पड़ता है. लोगों का कहना है कि जो भक्त सच्चे हृदय से बुढ़िया माता की पूजा-अर्चना करते हैं, वह कभी भी अकाल के गाल में नहीं समाते और सबकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
पूर्वांचल का सबसे प्रसिद्ध प्राचीन बुढ़िया माता मंदिर जहां हर समय भीड़ देखने को मिलती है, लेकिन नवरात्र में यहां दूर-दराज से आने वाले भक्तों की भीड़ ज्यादा होती है. वैसे तो वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने सारे ही अनुष्ठानों पर लगभग पूरी तरीके से पाबंदी लगा दी है, लेकिन भक्त और मां के बीच के अटूट रिश्ते पर इस वायरस रूपी राक्षस को भक्त हावी होने नहीं दे रहे हैं. पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग यहां आकर मां की आराधना करने में जुटे हुए हैं.गोरखपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर पूर्व में कुसम्ही जंगल के बीचोबीच बुढ़िया माता मंदिर स्थित है. मान्यताओं के अनुसार यहां बहुत घना जंगल हुआ करता था, जिसमें एक नाला बहता रहता है. तुर्रा नाले पर लकड़ी का एक पुल था.
यह है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व एक बारात आकर नाले के पूरब की तरफ रुकी. वहां सफेद वस्त्रों में एक बूढ़ी महिला बैठी थी. उसने नाच मंडली से नाच दिखाने को कहा, लेकिन नाच मंडली बूढ़ी महिला का मजाक उड़ाते हुए चली गई. अगले दिन जब बारात वापस लौटी, तब भी वह महिला वहां बैठी हुई थी. उसने फिर नाच मंडली से आग्रह किया कि उसे नाच दिखा दें. नाच मंडली में मौजूद जोकर ने बांसुरी बजाकर 5 बार घूमकर महिला को नाच दिखाया और वह जैसे ही पुल से नीचे उतरा पूरी बारात उस तुरा नाले में समा गई. पूरी बारात में सिर्फ वह जोकर ही बचा जो बरात के साथ आगे चल रहा था. उसके बाद बूढ़ी महिला अदृश्य हो गई, तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माता के नाम से विश्व प्रसिद्ध हो गया.वर्तमान समय में इन दोनों मंदिरों के बीच के नाले को नाव से पार किया जाता है. माता के महिमा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. वास्तविक और शारदीय नवरात्र में लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. माता के दर्शन को भक्तों की कई किलोमीटर लंबी कतार लग जाती है. पूरे नवरात्र मंदिर क्षेत्र में मेला लगा रहता है. इसके साथ मंदिर पर मुंडन, विवाह सहित कई मांगलिक आयोजन भी होते हैं. बुढ़िया माई की शक्ति चमत्कारी है. शहर से दूर गोरखपुर, कुशीनगर नेशनल हाईवे के पास कुसम्ही जंगल में स्थापित देवी के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर एक चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया, जिसे मां दुर्गा का रूप माना जाता है.
पूरी होती हैं भक्तों की मुरादें
वहीं श्रद्धालु सीमा सिंह बताती हैं कि उनकी इस मंदिर में बहुत आस्था है. वह पुत्र की मनोकामना लेकर आई थी और उनकी मुराद मां ने पूरी की. वह अक्सर ही परिवार के साथ मां के दरबार में आती रहती हैं. वह बचपन से ही यहां पर आ रही हैं. मां के दरबार में जो भी मांगते हैं, वह मन्नत पूरी होती है.
कई वर्षों से हो रही पूजा
वहीं बिहार से आए हुए रमेश प्रजापति कहते हैं कि उनकी कई पीढ़ियां पिछले कई वर्षों से यहां पर आकर पूरे विधि विधान के साथ माता की पूजा अर्चना करते हैं. मां सभी पर आशीर्वाद बनाए हुए हैं. यहां आने के बाद उन्हें लगता है कि जैसे वह अपनी मां की गोद में बैठे हुए हैं. किसी भी प्रकार का उन्हें डर और भय नहीं लगता. मां यहां आने वाले हजारों लाखों भक्तों की सारी मनोकामना को पूर्ण करती हैं.
मां का निराला स्वरूप
वैसे तो इस प्राचीन बुढ़िया माता मंदिर के बारे में कई किंवदंतियों प्रचलित हैं. मां अपने भक्तों की तमाम मनोकामनाएं पूरी करती हैं. हर संकट से उन्हें बचाती हैं. सच्चे भक्तों को अलग-अलग रूपों में मां दर्शन भी दे चुकी हैं और उन्हें सही रास्ता भी दिखाती हैं. सफेद बाल, सफेद साड़ी और हाथ में छड़ी लिए मां का स्वरूप निराला है. यह भक्तों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं.