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वैज्ञानिक कारणों से भी अनूठा है छठ महापर्व - significance of chhath puja

छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है. देश में छठ पर्व का विशेष महत्व है. छठ का पर्व चार द‍िनों का होता है और इसका व्रत सभी व्रतों में सबसे कठ‍िन होता है. इसल‍िए इसे महापर्व के नाम से जाना जाता है. यह पर्व आस्‍था ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक कारणों से भी अनूठा महापर्व है. आगे जानिए इस पर्व के विशेष वैज्ञानिक महत्व के बारे में...

छठ का वैज्ञानिक कारण
छठ का वैज्ञानिक कारण

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Published : Nov 19, 2020, 12:49 PM IST

गोरखपुर: छठ व्रत मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है. इसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है. सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा हैं. प्रातः काल सूर्य की पहली किरण को उषा और सांयकाल में अंतिम किरण प्रत्यूषा होती हैं, जिसे छठ के अवसर पर व्रती महिलाएं नमन/ प्रणाम करती हैं और अर्घ्य देती हैं. वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी छठ पूजा की अलग महत्ता बताई गई है. गोरखपुर के विद्वान ज्योतिषी शरद चंद्र मिश्र का कहना है कि छठ पूजा को यदि वैज्ञानिक रूप से देखा जाए, तो षष्ठी तिथि को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित होती हैं. इसलिए इसके कुप्रभाव से बचाव के लिए इस पर्व का सर्वाधिक महत्व है.


अमावस्या के 6 दिन बाद होता है यह परिवर्तन
ज्योतिषाचार्य मिश्र कहते हैं कि इस व्रत से पृथ्वी के जीवों को बड़ा लाभ मिलता है. सूर्य की किरणों के साथ उसकी पराबैंगनी किरणें भी पृथ्वी पर आती हैं. छठ जैसे खगोलीय स्थिति के दिन में पृथ्वी पर आने वाली पराबैंगनी किरण चंद्रतल से अपरिवर्तित होकर पृथ्वी पर सामान्य मात्रा से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं, क्योंकि इस समय चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण स्थल सम रेखा में होते हैं. यह वायुमंडल के स्तरों में आवर्ती होती हुई सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अधिक हो जाती है. ज्योतिषीय और खगोलीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक और चैत्र माह के अमावस्या से 6 दिन उपरांत होती है. इसलिए इस दिन उसके कुप्रभाव से बचने के लिए व्रत और अर्ध/अर्चन का विधान है.


सूर्य और छठ मईया का संबंध भाई-बहन का
ज्योतिषाचार्य मित्र कहते हैं कि सूर्योपासना की परंपरा भारतवर्ष में ऋग्वेद काल से चली आ रही है. सूर्य की उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण और ब्रम्हवैवर्त पुराण में विस्तार से की गई है. सृष्टि के पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ की गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में मिलता है. इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ उपनिषद् आदि वैदिक ग्रंथों और पुराणों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है.

लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठ मैया का संबंध भाई बहन का है. सर्वप्रथम सूर्य ने ही षष्ठी देवी की पूजा की थी. इस व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब श्रीकृष्ण के बताने पर द्रोपदी ने छठ व्रत किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई, जिससे पांडवों को राज्य की प्राप्ति हुई थी.

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