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Jharkhandi Mahadev: झारखंडी महादेव मंदिर में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़, यहां दर्शन-पूजन से पूरी होती हैं मुरादें

सावन के महीने में गोरखपुर के झारखंडी महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. 400 साल पुराने इस मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के साथ आते रहते हैं. योगी सरकार में मंदिर के विकास में विशेष पहल हुई है.

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Published : Jul 10, 2023, 5:22 PM IST

सावन
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मंदिर के पुजारी और श्रद्धालुओं ने बताया.

गोरखपुर: भोले शंकर, महादेव तो हर शिव भक्तों के लिए सदैव पूज्यनीय होते हैं. लेकिन सावन में विभिन्न मंदिरों में विराजमान शिवलिंग पर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के जल, दूध, बेलपत्र, पुष्प समर्पित करने के लिए उमड़ पड़ते हैं. इसी कड़ी में गोरखपुर के झारखंडी महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. इस मंदिर को लेकर विशेष मान्यता है, जिसकी वजह से दूर दराज से श्रद्धालुओं पहुंचते हैं.

झारखंडी महादेव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए महिलाओं की उमड़ी भीड़.

योगी सरकार में मंदिर के लिए विशेष पहलः गोरखपुर में महाशिवरात्रि हो या सावन 'झारखंडी महादेव मंदिर' में भक्तों की भारी भीड़ की वजह से 3 बजे से ही यह मंदिर खुल जाता है. इसके बाद दर्शनार्थी झारखंडी महादेव का दर्शन पूजन करने में जुट जाते हैं. यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाकर हर भक्त भगवान भोलेनाथ की कृपा और अपने मनोकामना की पूर्ति की कामना करते हैं. यहां सुबह से ही मंदिर में घंटा बजने लगता है. सावन में जल चढ़ाने और रुद्राभिषेक कराने के लिए भी भक्तों की कतार लगी रहती है. श्रद्धालु कतारबद्ध होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. इसके विकास को लेकर योगी सरकार में विशेष पहल हुई है. सीएम योगी आदित्यनाथ अक्सर यहां आकर जल चढ़ाते हैं. पिछले वर्ष उनका यहां आगमन हुआ था.

शिवलिंग का हुआ जीर्णोद्धार: झारखंडी महादेव मंदिर के महत्व को देखते हुए यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा हेतु भारी पुलिस बल तैनात रहती है. इसका इतिहास भी काफी पौराणिक और महत्व का है. पुरातत्व और पर्यटन विभाग के रिकॉर्ड में भी शिव मंदिर की महिमा दर्ज है. झारखंडी मंदिर का इतिहास करीब 400 साल से भी अधिक का बताया जाता है. उस समय यह क्षेत्र पूरी तरह से वन क्षेत्र हुआ करता था. यहां लकड़ी काटने के दौरान एक लकड़हारा की कुल्हाड़ी से एक पत्थर टकराया था. लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी चलाता रहा. लेकिन, दो बार के बाद उसे अपनी कुल्हाड़ी रोककर पत्थर पर नजर दौड़ानी पड़ी तो दिखा कि वह एक शिवलिंग है. मौजूदा समय में जिस स्थान पर लोग पूजन अर्चन करते हैं. वह स्थान ही तत्कालीन शिवलिंग का स्वयंभू स्थान है. वन का क्षेत्र रईस पुरुषोत्तम दास का था. जिन्हें भगवान भोलेनाथ का स्वप्न भी आया था. उन्होंने शिवलिंग का जीर्णोद्धार कराकर इनका स्वरूप निखारा तो यह धीरे-धीरे लोगों की आस्था का केंद्र हो गया.

लाखों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालुः मंदिर के पुजारी ईश्वरीय प्रसाद मिश्रा इसे स्वयंभू शिवलिंग बताया. उन्होंने कहा कि आस्था के इस केंद्र पर पूजा पाठ, रामायण, रुद्राभिषेक, मुंडन संस्कार, सभी तरह के आयोजन होते हैं. मंदिर समिति के सदस्य सत्यनारायण सिंह इसकी महत्ता से जुड़ी कहानी को बयां करते हैं और कहते हैं कि यह काफी पुराना मंदिर है. यह मंदिर सभी के आस्था का केंद्र है. यहां श्रद्धालु प्रतिमा यादव सुबह शाम आती हैं. इस मंदिर में उनकी अटूट आस्था है. वहीं, विष्णु शर्मा ने बताया कि सावन के इस महीने में बाबा भोलेनाथ को जल न चढ़ाया जाय, यह कैसे संभव है. आज यहां हजारों नहीं लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के साथ आते रहते हैं. पुरातत्व विभाग के आंकड़े में भी यह मंदिर 1845 से दर्ज है. साढ़े छह एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस मंदिर में लोग श्रद्धा भाव के साथ आते है.

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