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अष्टमी व नवमी के बीच पुण्यकाल में होती है मां चामुंडा की संधि पूजा, मिलता है विशेष फल - sandhi puja gorakhpur

यूपी के गोरखपुर में बंगाली समाज द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष संधि पूजा का आयोजन बड़े ही विधि विधान के साथ किया गया. इस खास संधि पूजा में मां चामुंडा की पूजा-अर्चना की जाती है.

अष्टमी और नवमी के बीच के 48 मिनट होते हैं सबसे खास.

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Published : Oct 6, 2019, 11:12 PM IST

गोरखपुर:नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा विधि विधान के साथ की जाती है. ऐसे में महा अष्टमी के अवसर पर रविवार को बंगाली समाज के लोगों ने विशेष संधि पूजा की. जहां बालक इंटर कॉलेज में स्थापित बंगाली समाज द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष संधि पूजा का आयोजन बड़े ही विधि विधान के साथ किया गया. शास्त्रों के अनुसार इस पूजा का बड़ा ही विशेष महत्व होता है. जिले में यह विशेष पूजा दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से लेकर 2 बजकर 45 मिनट तक की गई.

पुण्यकाल में होती है मां चामुंडा की संधि पूजा.

पढ़ें:परंपरा निभाने के लिए स्थापित होती है मां दुर्गा की प्रतिमा, धूमधाम से खुले पट

मां ने क्रोधित होकर किया था चंड और मुंड का वध
कथाओं के अनुसार संधि पूजा का विशेष महत्व होता है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी दुर्गा दानव महिषासुर के साथ लड़ रही थी तो महिषासुर के सहयोगी चंड और मुंड ने देवी दुर्गा पर पीछे से प्रहार किया था, जिससे देवी क्रोधित हो गई और उनका चेहरा गुस्से से नीले रंग में बदल गया. इतने में देवी ने अपनी तीसरी आंख खोली और चामुंडा अवतार का रूप ले लिया और दोनों ही दुष्ट राक्षसों का वध कर दिया.
भगवान श्रीराम ने मां को आंखें चढ़ाने का लिया था निर्णय
वहीं ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम रावण से युद्ध के दौरान जीत हासिल करने के लिए मां शक्ति की उपासना की, इस दौरान भगवान श्रीराम ने मां को 108 कमल चढ़ाने का निश्चय किया. कमल चढ़ाने के दौरान कमल की संख्या 108 की बजाए 107 रही, जिस पर भगवान श्रीराम ने मां को अपने आंखें चढ़ाने का निर्णय लिया. इस दौरान मां दुर्गा प्रकट हुईं और उन्होंने भगवान श्रीराम को रावण से युद्ध कर विजय हासिल करने का आशीर्वाद दिया था.

मां चामुंडा के सम्मान में की जाती है संधि पूजा
देवी दुर्गा के भयंकर रूप के अवतार मां चामुंडा के सम्मान में संधि पूजा के रूप में की जाती है. संधि पूजा में 108 दिए, 108 कमल, 108 बेल पत्र, गहने, पारंपरिक कपड़े, गुड़हल के फूल, चावल, अनाज और एक लाल फूल तथा माला का उपयोग किया जाता है. संधि पूजा के दौरान मंत्रोच्चार के समय इन विशेष वस्तुओं को देवी को अर्पण किया जाता है.

अष्टमी की समाप्ति और नवमी तिथि के मध्यकाल में की जाती है पूजा
यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूजा ठीक उसी समय शुरू हो जब संधि क्षण शुरू होता है. इस पूजा के लिए मुहूर्त किसी भी स्थिति और किसी भी समय पर आ सकता है और पूजा उसी शुभ मुहूर्त में ही की जानी चाहिए. वहीं शुभ समय वह होता है, जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी शुरू होती है. पूजा के दौरान विभिन्न फलों की बलि भी दी जाती है, जिससे मां प्रसन्न हों और अपने भक्तों का उद्धार करें.

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