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डूब रहे बस अड्डे और वर्कशॉप का नहीं कोई तारणहार, PPP मॉडल के इंतजार में योगी सरकार

गोरखपुर में बस अड्डे के वर्कशॉप में करीब 200 बसें मरम्मत के लिए आती जाती हैं. लेकिन यह स्थान मौजूदा समय में बुरी तरह से पानी से लबालब भरा हुआ है, जिसके चलते लोगों को खासा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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रोडवेज वर्कशॉप गोरखपुर

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Published : Aug 30, 2022, 7:58 PM IST

गोरखपुर:यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के लिए तत्पर रहने वाला परिवहन निगम और उसकी बसें, खस्ताहाल वर्कशॉप की वजह से कई तरह की समस्याएं झेल रहा है. ऐसे में बात जब मुख्यमंत्री के शहर की हो तो समस्या पर गौर करना भी बेहद जरूरी हो जाता है. गोरखपुर का रोडवेज वर्कशॉप मौजूदा समय में बुरी तरह से पानी से लबालब भरा हुआ है. बारिश तो बारिश इधर से गुजरने वाले नालों का पानी भी बैकफ्लो करके वर्कशॉप में आ जाता है, जिसकी निकासी के लिए वर्कशॉप में पंपिंग सेट लगाना पड़ता है.

इस गंदे और जमे पानी में जहां बसें फंस जातीं हैं. वहां इनकी मरम्मत करना वर्कशॉप के कर्मचारियों के लिए बेहद कठिन कार्य हो जाता है. यही वजह है कि तमाम बसें मरम्मत के अभाव में खटारा ही सड़कों पर दौड़ती हैं, तो कभी मरम्मत के अभाव में बसें सड़कों पर समय से निकल भी नहीं पातीं. आलम यह है कि स्थानीय स्तर पर तो जैसे-तैसे जलभराव को दूर करने का उपाय अधिकारी करते हैं. लेकिन जो स्टीमेट बनकर शासन को जा रहा है. उसके समय से पास नहीं होने से यह समस्या लगातार बढ़ती जा रही है.

गोरखपुर रोडवेज वर्कशॉप में पानी भरा हुआ है

दरअसल, गोरखपुर बस अड्डे के वर्कशॉप में करीब 200 बसें मरम्मत के लिए आती जाती हैं. इसके अलावा अनुबंधित और बाहर के जिलों से आने वाली बसें भी यहां पर आती हैं. लेकिन जब वर्षा में यहां पानी भर जाता है तो काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसा भी नहीं है कि तालाब का रूप धारण करने वाला यह परिसर साल दो साल की कहानी बता रहा है, यह पिछले कई सालों से होता आ रहा है. लेकिन इसकी सुधि न जाने निगम और सरकार क्यों नहीं ले रही. जबकि इससे दोनों को मोटी कमाई होती है. कभी-कभी तो वर्षा में बसे जब फंसती हैं तो क्रेन से निकालना पड़ता है.

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बता दें कि गोरखपुर रीजन में 700 से ज्यादा सरकारी और अनुबंधित बसें सड़कों पर दौड़ती हैं. लेकिन उनके रखरखाव का स्थान जिससे बुरी दशा में है उसे ठीक करने के लिए निगम और सरकार को पीपीपी मॉडल पर निर्भरता छोड़नी होगी, क्योंकि उनके कर्मचारी बहुत बुरी दशा में काम करते हैं. पिछले 5 साल के योगी सरकार में पीपीपी मॉडल पर इसके निर्माण के लिए कोई भी संस्था काम करने के लिए आगे नहीं आई है. वह अपनी समस्या मीडिया के सामने कह भी नहीं पाते क्योंकि उन्हें अपने ऊपर कार्रवाई का डर रहता है. वहं, गोरखपुर के क्षेत्रीय प्रबंधक परिवहन पीके तिवारी का कहना है कि तीन बार पीपीपी मॉडल के लिए टेंडर निकाला गया. लेकिन दुर्भाग्य से कोई संस्था आगे नहीं आई, जिसकी वजह से निर्माण कार्य प्रभावित है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि बहुत जल्द इस बस डिपो का कायाकल्प होगा.

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