पेंशन के लिए विभागो के चक्कर काटने को मजबूर है रिटायर्ड शिक्षक गोरखपुरः बहुत से जटिल कार्य तकनीकी के इस युग में बहुत ही आसानी से सुलझ जा रहे हैं. लेकिन, गोरखपुर में माध्यमिक शिक्षा विभाग से रिटायर हुए शिक्षक तकनीकी खामी के ऐसे शिकार हुए कि उन्हें अपनी पेंशन के लिए स्थानीय विभाग से लेकर लखनऊ तक का चक्कर काटना पड़ रहा है. जिन शिक्षकों को 40 से 50 हजार मासिक पेंशन मिलनी चाहिए थी. तकनीकी गड़बड़ियों के चलते उन्हें सात 700 से लेकर 800 रुपये तक का ही पेंशन जारी हो रहा है. शासनदेश एनपीएस जैसे नियमों में कई अंतर इस संकट को और बढ़ा रहे हैं.
जिले के गांधी इंटर कॉलेज हरपुर बुदहट पर तैनात रहे बालमुकुंद सिंह ने बताया कि वह 31 मार्च 2019 को सेवानिवृत्त हुए. उनका वेतन 75 हजार प्रतिमाह था. न्यू पेंशन स्कीम के अंतर्गत उनकी पेंशन विभाग ने 764 रुपये प्रतिमाह निर्धारित कर दी और यही रकम उनके खाते में भी आने लगी. इसके बाद उन्होंने जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय से इस संबंध में पत्राचार किया और शासनादेश का हवाला देते हुए अपनी पेंशन को सुधारने का अनुरोध किया. लेकिन समाजवादी सरकार में 2005 में हुए एक शासनादेश में कुछ शब्दों का हवाला देकर विभाग पेंशन को दुरुस्त करने में आनाकानी करते रहे.
रिटायर्ड शिक्षक बलराम सिंह 2007 में किया गया था समायोजितःबालमुकुंद सिंह कहते हैं कि उनकी कुल सेवा को शिक्षा विभाग ने जोड़ा ही नहीं है. 2007 में जब वह महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज से गांधी इंटर कॉलेज में समायोजित हुए तो शिक्षा विभाग ने पूर्व की सेवा को रिकॉर्ड में न लेते हुए अंतिम स्कूल की सेवा को ही उनके शैक्षणिक रिकॉर्ड में जोड़ दिया. जिससे वह पुरानी पेंशन स्कीम से वंचित हो गए. प्रदेश में नई पेंशन स्कीम जो लागू थी वही लाभ इनको मिलने लगा. इसका नतीजा है कि वह और उनके जैसे कई शिक्षक दर-दर भटक रहे हैं.
रिटायर्ड शिक्षक ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी इसकी अपील की. धरना प्रदर्शन किया लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ. महंगाई के इस दौर में बगैर पूरी पेंशन के परिवार की व्यवस्था को भी चला पाना बहुत कठिन हो चुका है. उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई मरते दम तक जारी रहेगी.
रिटायर्ड शिक्षक बालमुकुंद सिंह चंदौली के बलराम सिंहःऐसी ही एक समस्या को गोरखपुर में नौकरी करने वाले चंदौली जिले के बलराम सिंह भी झेल रहे हैं. वह जिले के पटेल स्मारक इंटर कॉलेज भटहट में अंग्रेजी के अध्यापक थे. 30 जून 2015 को वह सेवानिवृत्त हुए. तब उनका वेतन 45 हजार रुपये निर्धारित था. उनकी भी पेंशन एनपीएस स्कीम के मुताबिक नहीं निर्धारित की गई. लिहाजा उन्हें भी सात से आठ सौ रुपये की मासिक पेंशन में गुजारा करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि पेंशन अच्छी मिलती तो जिनके साथ लंबा समय गोरखपुर में बिताया शायद वहीं निवास करता.
शासन के स्तर पर चीजे लंबितःइसी प्रकार की समस्या से कुशीनगर के जयराम गुप्ता को भी गुजरना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि जब वो उदित नारायण इंटर कॉलेज से मार्च 2019 में सेवानिवृत्त हुए तब उनका वेतन 80 हजार था. न्यू पेंशन स्कीम में उनकी पेंशन भी मात्र 869 रुपये निर्धारित हुई है. लेकिन इनकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही. वहीं, इस मामले में जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक ज्ञानेंद्र सिंह भदौरिया ने शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि जो चीज शासन स्तर पर लंबित है. उस पर वह कुछ नहीं बोलेंगे. वह इसके लिए अधिकृत भी नहीं है.
शिक्षक संघ नाराजःशिक्षकों की समस्या को लेकर शिक्षक संघ के नेता भी बेहद नाराज हैं. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के चेतन नारायण गुट के मंडली मंत्री रणजीत सिंह कहते हैं कि वेतन की तरह जब डीए में बढ़ोतरी होती है तो पेंशन भी बढ़ती है. जबकि एनपीएस में एक बार पेंशन फिक्स होने के बाद कोई वृद्धि नहीं होती. जो शिक्षक को मानसिक और आर्थिक रूप से बेहद पीड़ा दे रही है. जिसका निदान तेजी के साथ सरकार को करना चाहिए. इसी प्रकार डीएवी कन्या इंटर कॉलेज बक्सीपुर से सेवानिवृत्त हुई रीता श्रीवास्तव भी ऐसी ही समस्या को झेल रही हैं. जिले में ऐसे शिक्षकों की संख्या ज्यादा है, जिनकी सुनवाई अटकी पड़ी है.
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