गोरखपुरःशहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने गोरखपुर मंडलीय कारागार में चार महीने 10 दिन बिताए थे. मंडलीय कारागार के जिस कमरे में राम प्रसाद बिस्मिल ने अपना समय गुजारा था उसे काल कोठरी नंबर-7 कहा जाता है. यहीं से राम प्रसाद बिस्मिल ने लोगों में क्रांति की अलख को जगाने के लिए कई पत्र भी लिखे थे. यही नहीं उन्होंने अपनी आत्मकथा भी इसी कमरे में लिखी. ईटीवी भारत आज उसी कमरे से आपको रूबरू कराने जा रहा है.
19 दिसंबर 1927 को दी गई थी फांसी
आपको जानकर हैरानी होगी कि काकोरी कांड में सजा पाने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल को 10 अगस्त 1927 को गोरखपुर जेल लाया गया था. जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें फांसी दे दी गई थी. राम प्रसाद बिस्मिल महज 30 वर्ष की उम्र में ही शहीद हो गए थे. गोरखपुर जेल में उन्होंने चार महीने 10 दिन का समय गुजारा था. इस दौरान उन्होंने लोगों में क्रांति पैदा करने के लिए कई पत्र लिखे.
मां के टिफिन से बाहर पहुंचवाई थी आत्मकथा
गोरखपुर जेल में ही पंडित बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी थी. उनकी यह आत्मकथा फांसी से दो दिन पहले हुई पूरी हुई थी. बताया जाता है कि फांसी से दो दिन पहले ही उनकी मां उन्हें भोजन कराने आई थीं. इसी दौरान शहीद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा खाने की टिफिन में रखकर मां के हाथों जेल से बाहर पहुंचवाया था. 1928 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने बिस्मिल की आत्मकथा को छपवाया था. आत्मकथा में इस महान क्रांतिकारी के जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू शामिल थे जो क्रांतिकारी अभियान को आगे बढ़ाने में काफी मददगार हुए.