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गोरखपुर जेल का वह कमरा जहां बिस्मिल ने लिखी आत्मकथा

यूपी के गोरखपुर में महज 30 साल की उम्र में हंसते हुए फांसी को गले लगाने वाले राम प्रसाद बिस्मिल को कौन नहीं जानता. बिस्मिल ने देश की आजादी के लिए अपनी जान की परवाह भी नहीं की. गोरखपुर कारागार में बिस्मिल ने चार महीने 10 दिन का समय गुजारा था.

काकोरी के महानायक
काकोरी के महानायक

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Published : Dec 21, 2020, 5:27 PM IST

Updated : Dec 21, 2020, 6:43 PM IST

गोरखपुरःशहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने गोरखपुर मंडलीय कारागार में चार महीने 10 दिन बिताए थे. मंडलीय कारागार के जिस कमरे में राम प्रसाद बिस्मिल ने अपना समय गुजारा था उसे काल कोठरी नंबर-7 कहा जाता है. यहीं से राम प्रसाद बिस्मिल ने लोगों में क्रांति की अलख को जगाने के लिए कई पत्र भी लिखे थे. यही नहीं उन्होंने अपनी आत्मकथा भी इसी कमरे में लिखी. ईटीवी भारत आज उसी कमरे से आपको रूबरू कराने जा रहा है.

राम प्रसाद बिस्मिल ने मंडलीय जेल की काल कोठरी नंबर-7 में गुजारे थे चार महीने 10 दिन.

19 दिसंबर 1927 को दी गई थी फांसी
आपको जानकर हैरानी होगी कि काकोरी कांड में सजा पाने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल को 10 अगस्त 1927 को गोरखपुर जेल लाया गया था. जिसके बाद 19 दिसंबर 1927 को उन्हें फांसी दे दी गई थी. राम प्रसाद बिस्मिल महज 30 वर्ष की उम्र में ही शहीद हो गए थे. गोरखपुर जेल में उन्होंने चार महीने 10 दिन का समय गुजारा था. इस दौरान उन्होंने लोगों में क्रांति पैदा करने के लिए कई पत्र लिखे.

मां के टिफिन से बाहर पहुंचवाई थी आत्मकथा
गोरखपुर जेल में ही पंडित बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी थी. उनकी यह आत्मकथा फांसी से दो दिन पहले हुई पूरी हुई थी. बताया जाता है कि फांसी से दो दिन पहले ही उनकी मां उन्हें भोजन कराने आई थीं. इसी दौरान शहीद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा खाने की टिफिन में रखकर मां के हाथों जेल से बाहर पहुंचवाया था. 1928 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने बिस्मिल की आत्मकथा को छपवाया था. आत्मकथा में इस महान क्रांतिकारी के जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू शामिल थे जो क्रांतिकारी अभियान को आगे बढ़ाने में काफी मददगार हुए.

जेल में कैद मुक्त हो गया है बिस्मिल का कमरा
देश की आजादी के बाद भी बिस्मिल के इस कमरे तक बड़ी मुश्किल से ही लोग पहुंच पाते थे. यह जेल की चाहरदीवारी में कैद था. यहां पहुंचने के लिए जेल प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती थी. लेकिन 16 दिसंबर 2018 को जिला जेल स्थित यह शहादत स्थली राज्य सरकार के आदेश और एक सामाजिक कार्यकर्ता के बरसों की पहल पर आम जनमानस के लिए आजाद हो गई है.

कमरे में रखी हैं सभी वस्तुएं
आज भी इस कमरे में राम प्रसाद बिस्मिल की एक विशाल तस्वीर लगी हुई है. उनके सोने-बैठने और पूजा करने की सारी वस्तुएं सहेज कर रखी गई हैं. भारत मां के लाल का यह कमरा मौजूदा समय में एक मंदिर के समान है. इस कमरे को देखने के लिए लोग पहुंचते हैं. कमरे को देखने से लोगों के मन में ऐसे वीर शहीदों के प्रति श्रद्धा और प्रेम का भाव उमड़ता है.

शाहजहांपुर में जन्मे थे बिस्मिल
बता दें कि राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 में शाहजहांपुर में हुआ था. राम प्रसाद ने देश को आजाद कराने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामा था. ऐसा करने से बिस्मिल अंग्रेजों की नजरों में आ गए थे. 9 अगस्त 1925 को इन लोगों ने काकोरी नाम की जगह पर ब्रिटिश हुकूमत के खजाने काे लूट लिया. बाद में जांच होने पर राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, रौशन सिंह और राजेन्द्र लहरी को सामूहिक रूप से फांसी की सजा सुनाई गई थी.

Last Updated : Dec 21, 2020, 6:43 PM IST

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