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गोरखपुर: दृष्टिबाधित दिव्यांगों के लिए प्रेरणादायी है यह शिक्षक, जला रहा शिक्षा की ज्योति - गोरखपुर विश्वविद्यालय

प्रतिभा कभी सुविधाओं, संसाधनों की मोहताज नहीं होती. इस बात को एक बार फिर चरितार्थ करके दिखाया है गोरखपुर के दृष्टिबाधित दिव्यांग शिक्षक राकेश त्रिपाठी ने. वह अब दिव्यांगों के लिए नजीर बन गए हैं.

दृष्टिबाधित दिव्यांगों के लिए प्रेरणादायी है शिक्षक राकेश त्रिपाठी.

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Published : Sep 15, 2019, 4:36 PM IST

गोरखपुर: राकेश त्रिपाठी बांसगांव तहसील के मऊ खुर्द गांव के रहने वाले हैं. वह सहायक अध्यापक हैं और पिछले चार साल से महराजगंज के परतावल ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय कतरारी में तैनात हैं.

बचपन में तबियत बिगड़ने पर इलाज के अभाव में चली गई थी आंखों की रोशनी

राकेश त्रिपाठी बताते हैं कि उनके पिता लालता प्रसाद त्रिपाठी एक किसान हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. चार भाइयों में वह सबसे छोटे हैं. उन्होंने बताया कि वह जन्म से दृष्टिबाधित नहीं हैं. दो-ढाई साल की उम्र में किसी बीमारी से ग्रसित होने पर इलाज के अभाव में उनकी दोनों आंखोंं की रोशनी चली गई. तीनों बड़े भाई इन दिनों गुजरात में रह कर फल का करोबार करते हैं और वहीं रहते भी हैं.

पिता लालता प्रसाद अपने पैतृक गांव में ही रहते हैं. उनकी माता इस दुनिया में नहीं रहीं. राकेश पत्नी और एक बच्ची के साथ चरगांवा ब्लॉक के सताब्दीपुरम कॉलोनी में रहते हैं.

देखें वीडियो.

बचपन से याददाश्त रही है तेज
राकेश त्रिपाठी की बचपन से यादाश्त बहुत तेज थी. उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय दृष्टिबाधित विद्यालय गोरखपुर में ग्रहण की. पहली कोशिश में मैट्रिक पास किया तो उनका नाम पेपर में छपा. वहीं से उनके मन में पढ़ाई के प्रति लगाव बढ़ा, लेकिन किसी कारणवश उनको स्कूल छोड़ना पड़ा. सीबीएससी बोर्ड से उन्होंने प्राइवेट कंडिडेट के रूप में इंटर पास किया. हायर एजुकेशन के लिए राजधानी दिल्ली का रुख किया तो उनके सामने आर्थिक स्थिति आड़े आने लगी. इसके बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

ट्रेन में कैलेंडर और ताला-चाभी बेच कर पूरी की पढ़ाई
दृष्टिबाधित दिव्यांग बताते हैं कि बीए करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन के बाद उनके सामने जीविका चलाने की समस्या खड़ी हो गई. लोगों के डोनेशन से फीस तो भरी गई, लेकिन कमरे का किराया तथा जीविका चलाने के लाले पड़ गए. उन्होंने अपनी जरूरतों की आपूर्ति के लिए दिल्ली के ट्रेनों में ताला-चाभी और कैलेंडर आदि भी बेचा.

बीए की डिग्री मिलने के बाद उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीएड किया और टीईटी की तैयारी करने लगे. इस दौरान ट्रेनों में घूम कर सामान बेचना जारी रखा. टीईटी में अच्छे नंबर मिलने पर उन्होंने पड़ोसी जिले महराजगंज के बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक पद के लिए आवेदन किया. साल 2015 में उनका सेलेक्शन हुआ. ट्रेनिंग के बाद विभाग ने भटहट के प्राथमिक विद्यालय कतरारी पर नियुक्त कर दिया.

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15 किमी दूर चल कर जाते हैं विद्यालय
महराजगंज के प्राथमिक विद्यालय कतरारी पर नियुक्ति होने के कारण करीब 30 किमी रोजाना आना-जाना पड़ता है. बावजूद इसके ग्रामीण तथा सहयोगी अध्यापक बताते हैं कि किसी भी मौसम में वे समय के पाबंद रहते हैं. समय से विद्यालय पहुंच कर बच्चों को रूटीन, जनरल नॉलेज और मौखिक शिक्षा के गुर सिखाते हैं. इनकी कार्यशैली से सहयोगी अध्यापक बहुत संतुष्ट हैं.

मंजिल पाने के लिए जुनून चाहिए
राकेश त्रिपाठी ने अपनी इस सफलता पर ईटीवी भारत से चर्चा करते हुए कहा कि मंजिल पाने के लिए कड़ी मेहनत के साथ लगन और दिल में जुनून की जरूरत है. मैंने ये कभी नहीं माना कि शारीरिक रूप से कोई काम करने में अक्षम हूं. लगातार मेहनत और लगन से आज यह सफलता मिली है. मां-बाप का आशीर्वाद है कि आज मुझे मेरी मंजिल मिल गई.

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ऊंचे पद पर पहुंच कर समाजसेवी बनने का है लक्ष्य
ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि हमारे ऊपर समाज का बहुत बड़ा एहसान है. हर वर्ग के लोगों ने उनकी मदद की है.

मैं अच्छे पोस्ट पर पहुंच कर समाज की सेवा करना चाहता हूं. इसके लिए मैं आज भी फैजाबाद यूनिवर्सिटी से पीजी कर रहा हूं.
-राकेश त्रिपाठी, दृष्टिबाधित दिव्यांग

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