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कोरोना मरीजों से निजी अस्पताल कर रहे मनमानी वसूली, अधिकारियों तक नहीं पहुंच रही शिकायत ? - private hospital are taking arbitrary fee

कोरोना संकट के इस दौर में गोरखपुर के कुछ निजी अस्पताल आपदा को अवसर बनाने में जुटे हुए हैं. ये अस्पताल कोरोना मरीजों से इलाज के नाम पर लाखों का बिल वसूल रहे हैं. लेकिन, अधिकारी शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई की बात कहकर इस मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं. ऐसे में सवाल ये है कि इन अस्पतालों की मनमानी पर रोक कैसे लगेगी.

जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन
जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन

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Published : May 11, 2021, 12:35 PM IST

गोरखपुर: कोरोना महामारी की आपदा का ये दौर कुछ लोगों के लिए अवसर बन गया है. खासकर के निजी अस्पतालों के लिए. जहां मजबूर और परेशान मरीजों के इलाज के लिए मनमानी वसूली की जा रही है. शासन-प्रशासन की चेतावनी के बाद भी निजी अस्पताल कोविड मरीजों से इलाज के नाम पर मनमानी रकम वसूल रहे हैं, जिसकी कई शिकायतें रोजाना समाने आ रही हैं.

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उधर एक ओर जहां निजी अस्पताल कोरोना के मरीजों से इलाज के नाम पर मनमाना बिल वसूल रहे हैं, वहीं इन पर नकेल कसने के लिए जिन अधिकारियों की जिम्मेदारी हैं चाहे वह सीएमओ हों या कोविड-19 सेल के प्रभारी कोई भी फोन तक नहीं उठाता. ईटीवी भारत ने भी कई मामलों में जिला प्रशासन, स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य से लगातार संपर्क करने की कोशिश की और एक घंटे तक कई अधिकारियों को फोन लगाया, लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो पाया. निजी अस्पताल जहां लूट करने पर आमादा है तो वहीं सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को इस बात का डर है कि अगर अस्पताल के अंदर की अव्यवस्था की शिकायत उनके परिजन जिम्मेदार अधिकारियों से करते हैं तो डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ उनके इलाज में लापरवाही न बरतने लगें.



तय दरों से 10 गुना तक हो रही वसूली
शासन ने प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए शुल्क तय कर रखे हैं, बावजूद इसके कोरोना मरीजों के इलाज के नाम पर लूट का खेल चालू है. अस्पतालों में शासन की मंशा के विपरीत मरीजों से तय शुल्क का 10 गुना तक वसूला जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच के लिए एक समिति भी बनाई है. लेकिन, यह समिति बस यही जांच करती है कि निजी अस्पतालों में कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत इलाज हो रहा है या नहीं.

2 दिनों के लिए वसूले 2.5 लाख
सहजनवा क्षेत्र के निवासी पवन मिश्रा ने अपनी मामी को कोरोना के इलाज के लिए शहर के खोवा मंडी गली के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था. जिनसे इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूली गई. मरीज को अस्पताल में भर्ती करते समय उनका ऑक्सीजन लेबल ठीक था, लेकिन दो दिन बाद उनका ऑक्सीजन लेबल नीचे आ गया और मरीज की मौत हो गई. पवन मिश्रा बताते हैं कि, उनकी मामी दो दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं, जिसके लिए अस्पताल ने ढाई लाख रुपये का बिल वसूला.

7 दिन अस्पताल में रहे मरीज को थमाया 17 लाख का बिल
जिले के पादरी बाजार निवासी अजय जायसवाल (37 वर्ष) और अजय की पत्नी अंशिका (35 वर्ष) शहर के पैनेशिया अस्पताल में भर्ती थे. आरोप है कि दोनों के इलाज के लिए अस्पताल ने 7 दिनों में 17 लाख का बिल वसूला. लेकिन, बावजूद इसके दोनों की कोरोना संक्रमण के कारण मौत हो गई.

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शिकायत करने में डरते हैं मरीज

सरकारी अस्पताल की बात करें तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज के HUD ब्लॉक में भर्ती कई मरीज इस बात से डरे हुए हैं कि अंदर की अव्यवस्था की शिकायत अगर बाहर उनके परिजन किसी बड़े अधिकारी से करते हैं तो उन्हें जो भी इलाज अंदर मिल रहा है वह नहीं मिलने पाएगा. आरोप है कि इलाज कर रहे डॉक्टर मरीजों को इस तरह की धमकी लगातार देते हैं.

कौन देगा इन सवालों के जवाब

कोरोना संकट के बीच पैदा हुए ऐसे सवालों का जबाव कौन देगा. जिले में अस्पतालों की निगरानी और जांच के लिए जो टीम बनाई गई है, अभी तक उसके रिकॉर्ड में मनमानी वसूली करने वाले अस्पतालों का नाम तक दर्ज नहीं है. इसे देखकर ऐसा लगता है कि या तो ये समिति अस्पतालों की जांच के लिए पहुंच नहीं रही हैं या फिर रिपोर्ट बनाने में समितियों की तरफ से मनमानी की जा रही है.



शासन के तय शुल्क से अधिक वसूल रहे निजी अस्पताल
शासन ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए जो शुल्क निर्धारित किया है उसके अनुसार उच्च सुविधा वाले निजी अस्पतालों में आइसोलेशन बेड का खर्च 11 हजार 200 रुपये, गंभीर मरीजों के इलाज का खर्च 17 हजार और अति गंभीर मरीजों का खर्च 20 हजार प्रतिदिन निर्धारित किया गया है. इसी प्रकार सामान्य अस्पताल में यह खर्च आइसोलेशन बेड का 9 हजार 200, गंभीर मरीज का 15 हजार और अतिगंभीर मरीज का खर्च 17 हजार निर्धारित किया गया है. लेकिन, ऐसा कहीं हो नहीं रहा.

जिम्मेदार अधिकारियों को नहीं मिलती कोई शिकायत ?

जिले के सीएमओ जहां निजी अस्पतालों द्वारा इस तरह की किसी भी वसूली की शिकायत को सिरे से नकारते हैं तो वहीं जिलाधिकारी के. विजयेंद्र पांडियन कहते हैं कि मरीजों की बढ़ती संख्या, सरकारी अस्पतालों में बेड का अभाव ऐसी परिस्थितियों को पैदा कर सकते हैं. लेकिन, जब उन तक ऐसी शिकायतें पहुंचेगी तो निश्चित रूप से निजी अस्पतालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी.

इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के अधिकारी इस महामारी के दौर में किस कदर अपने आंख-कान सब बंद करके बैठे हैं. सड़क पर जनता लूट, खसोट के खिलाफ चिल्ला रही है. ऑक्सीजन न मिलने से परेशान हैं और जिम्मेदार अधिकारियों को किसी मरीज की शिकायत तक नहीं मिल रही है.

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