गोरखपुर: जेल में बंद कैदी जब जेल से बाहर निकलेंगे तो खेती किसानी के माध्यम से अपनी आए बढ़ा सकेंगे. कुछ ऐसा ही प्रशिक्षण गोरखपुर जेल प्रबंधन द्वारा बंदियों को दिया जा रहा है. गोरखपुर मंडलीय जेल में सजा काट रहे कैदी जड़ी-बूटियां तैयार कर रहे हैं. इन जड़ी-बूटियों से कई तरह की बीमारियों को दूर किया जा सकता है.
गोरखपुर कारागार में सजा काट रहे कैदियों को उच्च स्वास्थ्य और प्रकृति से जोड़ने के लिए हर्बल पार्क भी बनाया गया है. इस हर्बल पार्क में 30 प्रकार की जड़ी बूटियों के पौधे उगाए गए हैं. जिसकी देखभाल जेल के कैदी कर रहे हैं. इसका उद्देश्य बंदियों को शांति व आयुर्वेद से जोड़ना है. जेल के इस पार्क में तुलसी, सतावर, अजवाइन, करौंदा, हल्दी, दालचीनी, इलायची, करी पत्ता, एलोवेरा, आंवला, पुदीना, लेमन ग्रास, बहेड़ा, अपराजिता, बेल, तेजपत्ता, गिलोय, सेब, सहजन, खिरनी, कालमेघ, चित्रक, स्टीविया, मीठी तुलसी, सिंदूरी, सर्पगंधा, भृंगराज, मंडूकपर्णी, पथरचटा, अश्वगंधा के पौधे हैं.
जेलर अरुण कुशवाहा ने बताया कि जेल में हर्बल खेती से कैदियों को नई और विशेष आर्थिक लाभ की खेती की जानकारी हो रही है. कौन सी जड़ी बूटियां किन रोगों में उपयोग होती है, इसमें वह निपुण हो रहे हैं. डिप्टी जेलर बृजेश नारायण पांडेय ने कई जगहों से औषधीय पौधों को मांगाकर कारागार में लगवाने की व्यवस्था की है. इन औषधीय पौधों की देखभाल जेल में बंद कैदी ही कर रहे हैं. इसका सकारात्मक परिणाम मिल रहा है. उन्होंने कहा कि अधिकतर बंदी खेती किसानी पृष्ठभूमि के हैं. जेल से जाने के बाद इसे वह रोजगार के रूप में भी अपना सकते हैं. जेल में हर्बल खेती और औषधीए पौधे उगाने की प्रेरणा लखनऊ पादप केंद्र से मिली है. इन हर्बल पौधों का उपयोग जेल स्टाफ और कैदी भी कर रहे हैं, जिसका बहुत ही फायदा भी हो रहा है.