गोरखपुर:कोरोना संक्रमण का खतरनाक दौर लगभग समाप्ति की ओर है, लेकिन इसके प्रभाव का असर पहले भी था और अभी देखा जा रहा है. सबसे खास बात यह है कि कोविड-19 में एंटीजन, ट्रू-नेट और आरटीपीसीआर की जांच में नेगेटिव आने वाले मरीज भी बड़ी तादाद में इससे प्रभावित हुए हैं, जिसे 'प्रिजम्प्टिव कोविड पॉजिटिव' कहा जाता है. इसमें लोगों का फेफड़ा बुरी तरह संक्रमित हुआ है, जिसका नतीजा रहा कि तमाम लोगों ने अपनी जान गंवाई है. कुछ लोग तो काफी लंबे समय तक संघर्ष के बाद रिकवरी कर पाने में सफल हुए.
पोस्ट कोविड के मरीजों में भी फेफड़ों के खराब होने की स्थिति सामने आ रही है, जिनका इलाज हो रहा है. लेकिन सबसे खतरनाक प्रिजम्प्टिव कोविड पॉजिटिव होना है जो कोविड के लक्षण भी नहीं बताता और धीरे-धीरे फेफड़ों को संक्रमित कर जानलेवा बन जाता है. गोरखपुर में कई लोगों ने इसकी पीड़ा सही है. कई लोग इससे जान भी गवां चुके हैं.
कोरोना के लक्षण के बाद भी अगर कोविड-19 कि जांच में आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आ रही है तो आप खुद की हालत को समझते हुए अपने फेफड़े का एक्सरे/सिटी स्कैन और ब्लड सैंपल की जांच जरूर कराएं. एक्सरे रिपोर्ट में फेफड़े के अधिकतम मात्रा में संक्रमित होने की स्थिति को डॉक्टर 'प्रिजम्प्टिव कोविड पॉजिटिव' मानकर इलाज कर रहे हैं.
जिला अस्पताल में अबतक 90 मरीज इस तरह के लक्षणों के आ चुके हैं. जिनका इलाज चल रहा है. यह सभी ऐसे मरीज हैं, जिन्हें सांस लेने में तकलीफ, बुखार और खांसी तो है लेकिन एंटीजन और आरटीपीसीआर की रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है. जिला अस्पताल में ऐसे मरीज हर दिन पहुंच रहे हैं. जिन्हें छुपा हुआ कोरोना वायरस प्रभावित कर फेफड़े को खराब कर रहा है.
जिला अस्पताल के डॉक्टर राजेश कुमार सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में कोविड-19 का कोई मतलब नहीं रहा गया है. कोविड-19 जांच में नेगेटिव आने वाले ऐसे मरीज जिनका ऑक्सीजन लेवल घटकर 70-75 पहुंच रहा है उनको प्रिजम्प्टिव कोविड-19 की कैटेगरी में रखकर इलाज किया जा रहा है. जो डायरेक्ट पॉजिटिव मरीज हैं उनके पास ऐसे मरीजों को न रखकर अलग वार्ड में रखकर इलाज किया जा रहा है. यहां जिला अस्पताल में इलाज में जो सुविधाएं नहीं है उसको मरीज को दिलाने के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज या टीबी अस्पताल में रेफर भी किया जा रहा है.
इसके प्रभावित मरीज जिनकी जान गई है उसका नाम अरविंद तिवारी है. जो लगभग 40 दिनों तक जिंदगी मौत से जूझता रहा. बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेकर प्राइवेट कोविड अस्पताल में भी उसका इलाज हुआ, लेकिन फेफड़ा 88% खराब हो जाने की वजह से अरविंद की जान नहीं बची. जिसकी उम्र मात्र 42 वर्ष थी. इसी तरह कई अन्य मरीज भी प्रिजम्प्टिव पॉजिटिव पाए गए हैं, जिनका इलाज जिला अस्पताल में चल रहा है.
गोरखपुर के रहने वाले संजय शुक्ला जिनकी उम्र 42 वर्ष थी वह भी पुणे के एक अस्पताल में फेफड़ों की करीब 90 प्रतिशत खराबी की वजह से अपनी जान गंवा बैठे. आशुतोष दुबे एक ऐसे मरीज थे जिनका ऑक्सीजन लेवल कभी 70-75 तो कभी 85-88 रहता था. खांसी खूब आती थी. कोरोना पॉजिटिव होने के एक सप्ताह बाद ही नेगेटिव हो गए. लेकिन इनकी बीमारी दो माह तक बनी रही. इनका भी फेफड़ा करीब 60 प्रतिशत संक्रमित था, जो डॉ. नदीम अरशद के इलाज से ठीक हुए हैं.
ऐसे में सावधानी इसी बात की लोगों को बरतनी है कि कोरोना का ग्राफ भले ही नीचे आ गया है, लेकिन अगर सांस फूलने, खांसी होने की समस्या लंबी बन रही हो तो कोविड-19 जांच जरूर कराएं. रिपोर्ट नेगेटिव है तो भी अपनी तकलीफ के साथ डॉक्टर से संपर्क करें, जिससे बीमारी से निजात और जान जाने का जोखिम कम हो सके.
सिटी स्कैन के जरिए कुल 6 प्रकार से फेफड़े की जांच होती है. साथ ही ब्लड सैंपल की जांच भी संक्रमण की स्थिति को बताता है. शहर के चर्चित चेस्ट फिजिशियन डॉक्टर नदीम अरशद कहते हैं कि सांस फूलने और खांसी के साथ ऑक्सीजन लेवल की मॉनिटरिंग मरीज को करते रहना चाहिए. ऑक्सीजन लेवल में लगातार गिरावट इस तरह के लक्षण को जन्म देता है, जिसका समय से उपचार जरूरी है नहीं तो जान जोखिम में पड़ सकती है.