गोरखपुर :विकासखंड पिपराइच के ग्रामसभा ककरखोर में वर्तमान समय में 2444 मतदाता हैं. यह गांव वर्षों से विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ था. स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी के बाद भी यह गांव मूलभूत सुविधाओं से काफी समय से वंचित था. लेकिन विगत 4 वर्षों में इस गांव ने जो विकास की गाथा लिखी है, वह काबिले तारीफ है. वर्तमान प्रधान चंद्रपाल सिंह राही और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस गांव के विकास के लिए बहुत काम किया है.
ईटीवी भारत ने की पड़ताल
पंचायत चुनाव को देखते हुए ईटीवी भारत की टीम ने ककराखोर गांव पहुंचकर प्रदेश सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के वायदों की तफ्तीश की. मौजूदा प्रदेश सरकार जहां प्रदेश में चौमुखी विकास होने का वादा कर रही है तो वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधि भी जनपद को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की बात कह रहे हैं. इन दावों की हकीकत की पड़ताल कर ईटीवी भारत की टीम ने यह जानने की कोशिश की, कि क्या सच में स्थानीय लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिली हैं या केवल कागजी खेल और या कोरे वायदे हैं.
गांव में बही विकास की धारा
ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 500 वर्ष पूर्व यह गांव अस्तित्व में आया था. यहां पर राजस्थान से आए हुए लोगों ने इस गांव को बसाने में अपना अहम योगदान निभाया था. यहां पर सभी जाति धर्म के लोग निवास करते हैं. ग्राम सभा ककरखोर में वर्तमान समय में अनुसूचित जाति 38%, सामान्य 40%, अनुसूचित जनजाति 0%, अल्पसंख्यक 300, ओबीसी 300 के आसपास रहती है. जिसमें युवाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा है. ज्यादातर युवा पढ़ाई के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करते थे. लेकिन वर्तमान सरकार के प्रयास के बाद अब इस गांव के लोग गांव के पास ही स्थित गिड़ा क्षेत्र में विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं में पढ़ाई कर अपने गांव में शिक्षा की अलख जगाने का कार्य भी कर रहे हैं. पहले मुख्य सड़क नहीं होने से युवाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. साधन का अभाव था, जिसकी वजह से लोगों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता था. अब ऐसा नहीं है, मुख्य मार्ग से गांव को जोड़ने वाली सड़क है. गांव को विभिन्न कस्बों को जोड़ने के लिए भी इंटरलॉकिंग वाली सड़कें मौजूद हैं. गांव में खेती किसानी करने वाले लोग भी अपनी फसलों को आराम से ले जाकर बाजारों में बेच लेते हैं और उचित मूल्य प्राप्त कर अपने परिवार का जीवकोपार्जन करते हैं. वहीं लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में जब लोग वापस गांव की तरफ रुख किए तो ग्राम प्रधान ने लोगों को मनरेगा के तहत कार्य देते हुए शासन से मिलने वाले खाने-पीने के सामानों की भी उपलब्धता लोगों को कराई. अब लोग गांव में ही रहकर मनरेगा के तहत विभिन्न कार्यों को कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि अब वह बाहर नहीं जाएंगे, गांव में ही रह कर रोजी रोजगार कर परिवार का जीवकोपार्जन करेंगे.