गोरखपुर: आज 11 जून को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती है. पं. राम प्रसाद बिस्मिल भारत के वो नायक हैं. जिनका नाम काकोरी कांड में दर्ज है. भारत को आजादी दिलाने वाले पं. राम प्रसाद बिस्मिल गोरखपुर जेल में कारावास काटने के बाद हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमकर शदीह हो गए. आज उनकी जयंती पर बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनको याद किया.
बता दें कि बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र सिंह और गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन कार्यकर्ताओं के साथ सिविल लाइंस चौक पहुंचे. वहां उन्होंने पं. राम प्रसाद बिस्मिल की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया. इस दौरान दोनों नेताओं ने मीडिया से बातचीत में कहा कि आजादी के वीर सपूतों को उनके जन्म और शहादत दिवस पर याद करना, उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करना हर भारतीय का दायित्व और कर्तव्य है. आज जिनकी वजह से हम सभी खुली हवा में सांस ले रहे हैं, उनके लिए हमारे मन में सम्मान का भाव होना चाहिए.
बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र सिंह और सांसद रवि किशन इस दौरान डॉ. धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसे वीर सपूत हमारे समाज के नायक हैं. युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं, इन्हें भुलाया नहीं जा सकता है. सांसद रवि किशन ने कहा कि आज हम लोग पंडित जी को याद कर रहे हैं. पं. रामप्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी जीवन पर एक फिल्म बनाने की इच्छा है. कहानी पर काम चल रहा है. जैसे उन्होंने चौरी-चौरा एक प्रतिकार नाम की फिल्म बनाकर क्रांतिकारियों के इतिहास को समाज के सामने रखा है. वैसे ही बिस्मिल जी के नाम पर एक फिल्म बनाएंगे.
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गौरतलब है कि पं. राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था. उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था. क्रांतिकारी घटनाओं से तो बिस्मिल का बड़ा वास्ता था. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उनके काकोरी कांड की होती है. यह लखनऊ में काकोरी स्टेशन के पास 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लूटे जाने की घटना है. जो अंग्रेजों की तरफ से ट्रेन में जाया जा रहा था.
इस क्रांतिकारी घटना में कुल 10 लोग शामिल थे. 26 सितंबर 1925 को बिस्मिल के साथ पूरे देश में 40 से अधिक लोगों को काकोरी डकैती मामले में गिरफ्तार किया गया. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को साथ में फांसी की सजा सुनाई गई थी. 19 दिसंबर 1927 को 30 वर्ष की आयु में पंडित जी को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई. जहां आज भी उनकी यादें संजोकर रखी गई हैं.
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