गोरखपुरः प्रदेश जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत के चुनाव से पूरे बीजेपी में घमासान मचा हुआ है. ये सारा खेल पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर है. जिसमें बीजेपी के बड़े-बड़े नेता अपने बेटा-बहू को कुर्सी पर बिठाने के लिए पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं. ऐसी ही जोर आजमाइश का बड़ा खेल इस समय गोरखपुर में चल रहा है. जहां सीएम योगी आदित्यनाथ से पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह की बहू साधना सिंह को अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने के लिए कई तरह से गणेश परिक्रमा की जा रही है.
अध्यक्ष की कुर्सी के लिए जोर-आजमाइश
साधना सिंह के पति फतेह बहादुर सिंह कैंपियरगंज विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के विधायक हैं. वो पूर्व में प्रदेश सरकार में कई विभागों के मंत्री भी रह चुके हैं. बसपा की सरकार में वो साधना सिंह को निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो गए थे. ऐसे में फतेह बहादुर सिंह योगी के पिछले दिनों हुए गोरखपुर दौरे पर उन सभी जगहों पर काफी सक्रिय दिखे जहां-जहां सीएम के कार्यक्रम थे. उनकी सक्रियता पर बीजेपी संगठन के एक बड़े पदाधिकारी ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि पूर्व मंत्री की कोशिश अपनी पत्नी को टिकट दिलाने की हो रही है. लेकिन फैसला तो सीएम योगी और संगठन में बैठे बड़े नेताओं को ही लेना है. हालांकि गोरखपुर बीजेपी के लोग किसी कार्यकर्ता को टिकट चाहते हैं.
साधना सिंह के लिए लामबंदी पूर्व सीएम की बहू होने का मिल सकता है फायदा
साधना सिंह राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रहतीं. उनकी पूरी सक्रियता उनके विधायक पति और पूर्व मंत्री फतेह बहादुर सिंह पर आती है. इस बार वो वार्ड नंबर-19 से करीब 7 हजार 5 सौ से अधिक मतों से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने में कामयाब हुई हैं. साधना सिंह के ससुर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल में विकास के अगुआ माने जाते हैं. आर्थिक रूप से साधना सिंह बाकी दूसरे प्रत्याशियों से सीधे तौर पर काफी मजबूत हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव धनबल और सत्ता के बल पर ही लड़ा जाता है. यही वजह है कि साधना सिंह को अध्यक्ष का प्रत्याशी बनाए जाने के लिए अपने सभी समीकरणों के साथ उनके पति फतेह बहादुर सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाने के साथ संगठन में भी एड़ी-चोटी एक किए हुए हैं. लेकिन उनकी यही सक्रियता बीजेपी संगठन के वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आ रही. क्योंकि फतेह बहादुर सिंह को बीजेपी से जुड़े अभी कुछ ही साल हुए हैं. जबकि इसके पहले वो बसपा और कांग्रेस से विधायक और मंत्री होते रहे हैं. यही वजह है कि संगठन के लोग बीजेपी के किसी ऐसे जिला पंचायत सदस्य को अध्यक्ष का टिकट चाहते हैं, जो पार्टी का वफादार रहते हुए इस चुनाव को लड़ा और जीता है.
3 जुलाई को होगा जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए मतदान
आपको बता दें कि साधना सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव बतौर बीजेपी उम्मीदवार नहीं लड़ी थीं. बीजेपी ने इन्हें न तो अपना प्रत्याशी बनाया था और न ही समर्थन दिया था. लेकिन बीजेपी की एक गणित इनके चुनावी गणित के साथ फिट भी बैठ रही थी. वजह ये थी कि बीजेपी ने कोई भी अपना समर्थित उम्मीदवार भी इनके खिलाफ नहीं उतारा था.जिससे इस बात को भी बल मिल रहा था कि शायद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व या सीएम योगी की तरफ से पहले से ही कोई ऐसा इशारा रहा होगा कि आने वाले अध्यक्ष के चुनाव में साधना सिंह को ही प्रत्याशी बनाया जाएगा. इसलिए उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी भाजपा न तो लड़ाई और न ही इन्हें अपना समर्थन दी. इसलिए ये भी माना जा रहा है कि साधना सिंह की जीत ही उनकी अध्यक्ष की परीक्षा थी. साधना सिंह पूर्व में बसपा सरकार में साल 2010 से 2015 तक जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं. वहीं इस बार बीजेपी को अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा करना इसलिए भी आसान है क्यों कि वो सत्ता में है. इस चुनाव को सरकार का चुनाव माना जाता है. नहीं तो जिला पंचायत सदस्यों की संख्या के आधार पर वो इस चुनाव को नहीं जीत सकती. कुल 68 सदस्यों में मात्र 19 सदस्य बीजेपी के हैं, 20 सदस्य सपा के हैं और जीत के लिए 35 सदस्यों की जरूरत है.
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ऐसे में जिस प्रत्याशी के पास पैसे और सत्ता की पावर होगी वही चुनाव जीतेगा. इन्हीं समीकरणों को देखते हुए साधना सिंह मजबूत दिखाई दे रही हैं, लेकिन बीजेपी संगठन के नेता का कहना है कि संगठन का भी जो सदस्य प्रत्याशी होगा. उसके पास न तो धन की कमी होगी और न समर्थन की. पूरी पार्टी उसके लिए लड़ेगी. जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए 26 जून को 11 बजे से नामांकन दाखिल होगा. जबकि नाम वापसी 29 जून को 11 बजे तक होगी और 3 जुलाई को वोट डाला जाएगा.