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बिस्मिल की शहादत की याद का दिन, यादगार लम्हों को समेटे है गोरखपुर जेल

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Published : Dec 18, 2021, 1:24 PM IST

Updated : Dec 19, 2021, 9:26 AM IST

साल 1927 की 19 दिसबंर की एक ठिठुरती सुबह के करीब साढ़े 6 बजे अग्रेंजों ने जब एक खुशनुमा और रोबीले नौजवान से फांसी के पहले की आखिरी इच्छा पूंछी तो उसने मुस्कुराते हुए कहा I WISH DOWN fAll OF BRITISH EMPIRE. ये शब्द सुनकर अंग्रेज अधिकारी सन्न रह गया. ये कोई और नहीं ये थे महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, आज उनकी याद का दिन है. यानि आज ही के दिन भारत माता का ये वीर सपूत हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया था.

बिस्मिल की शहादत की याद का दिन
बिस्मिल की शहादत की याद का दिन

गोरखपुर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 19 दिसंबर सन 1927 एक ऐसा दिन है, जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई में जुटे नौजवानों, क्रांतिकारियों में एक नई ऊर्जा भरने का कार्य किया था. इस तिथि का गवाह गोरखपुर का मंडली कारागार बना था. जिसमें महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को इस दिन अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था. सुबह के 6:30 बजे के समय जब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई तो उनसे अंग्रेजों ने उनकी आखिरी इच्छा पूछी थी. इस दौरान भी भारत भूमि को हमेशा के लिए छोड़कर जाने वाले इस महान क्रांतिकारी ने जो भाव प्रकट किया वह था " I WISH DOWN fAll OF BRITISH EMPIRE ". यह महान क्रांतिकारी आज हम लोगों के बीच में तो नहीं हैं, लेकिन वह हमारे जेहन में आज भी जिंदा है. उनका जन्म और बलिदान दिवस हमेशा हमें राष्ट्रभक्ति की भावना से प्रेरित करता है.


काकोरी कांड के इस महानायक को 8 अगस्त 1927 को लखनऊ कारागार से गोरखपुर शिफ्ट किया गया था. जिस कमरे में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल रहते थे वह उनके साधना की भूमि और साधना का कक्ष बना. यहां पर उन्होंने आप अपनी आत्मकथा लिखी. यही नहीं अपने क्रांतिकारी जीवन में रामप्रसाद ने कुल 11 किताबों की रचना किया. गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर राजवंत राव कहते हैं कि किसी भी लड़ाई को जीतने के लिए पढ़ाई की बेहद जरूरत होती है जो पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी जीवन से साफ-साफ परिलक्षित होता है.

बिस्मिल की शहादत की याद का दिन

उन्होंने कहा कि भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अमेरिका, रूस जैसे देशों की क्रांति का इतिहास न सिर्फ पढ़ा बल्कि उसे आत्मसात भी किया. राम प्रसाद बिस्मिल की यादों को संजोये गोरखपुर कारागार का परिसर मौजूदा समय में अपने जीर्ण-शीर्ण अवस्था से बाहर आ चुका है. योगी सरकार में इसमें लाखों रुपए खर्च कर व्यवस्थित कर दिया गया है. जहां उन्हें फांसी दी गई थी उस कोठरी को भी नवसृजित कर दिया गया है. परिसर में स्थापित उनकी प्रतिमा और सभागार उनकी यादों को संजोये हुए हैं. जहां अब हर कोई आसानी से पहुंच सकता है. पहले यह कारागार की दीवारों में कैद था लेकिन प्रदेश की योगी सरकार ने इसे कारागार की कैद से भी मुक्त करा दिया है. 19 दिसंबर को यहां पर बड़ा बलिदानी मेला लगता है. जिसमें गांव- देहात के लोग अपने वीर सपूत को नमन करने और श्रद्धांजलि देने तो आते ही हैं सरकारी महकमों के लोग यहाँ आकर माहौल को पूरी तरह से देशभक्ति से ओतप्रोत बना देते हैं. इस आयोजन में गोरखपुर कारागार प्रबंधन भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है. कारागार के अधीक्षक ओपी कटिहार कहते हैं कि इस आयोजन से जुड़कर जेल प्रबंधन बिस्मिल जैसे महान क्रांतिकारी के प्रति अपना श्रद्धा समर्पित करता है.

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राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत के बाद उनकी शव यात्रा गोरखपुर शहर से होते हुए राप्ती नदी के तट पर ले जाई गई थी. रिकॉर्ड बताते हैं कि उस दौरान लाखों की भीड़ इस शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़ी थी. घंटाघर चौक पर सभा का आयोजन हुआ था जिसे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की मां ने संबोधित किया था. उस संबोधन के बाद लोगों की आंखें नम हो गई थी.

भारत माता के सपूत की शव यात्रा में लोग गगनभेदी नारे के साथ राप्ती तट पर पहुंचे और अंतिम संस्कार किया. उनके चिता की राख पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले बाबा राघव दास ने बरहज के अपने आश्रम में ले जाने का कार्य किया था. राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर कई तरीके से याद करता है. घंटाघर चौक हो, राप्ती नदी का किनारा हो, सिविल लाइंस चौक हो या जिला कारागार का मुख्य द्वार. इन सभी जगहों पर पंडित जी की उपस्थिति प्रतिमा और द्वार के रूप में लोगों को बरबस ही उनकी याद से जोड़ती जाती है. ईटीवी भारत भी देश के इस महान सपूत को उनके बलिदान दिवस पर अपनी श्रद्धांजलि देता है.

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Last Updated : Dec 19, 2021, 9:26 AM IST

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