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ट्रेन की नहीं मिली टिकट तो गाजियाबाद से घर वापसी के लिए खरीदी कार

लॉकडाउन के बीच गाजियाबाद में फंसा एक शख्स पत्नी के साथ वापस अपने घर गोरखपुर लौटा. खास बात यह कि शख्स ने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर कार खरीदी, जिससे वह घर लौटा. दरअसल ट्रेन में भीड़ होने की वजह से उसकी टिकट कन्फर्म नहीं हुई और ट्रेन में संक्रमण का खतरा भी था, जिसके चलते उसने यह कदम उठाया.

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घर लौटता लल्लन और उसकी पत्नी.

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Published : Jun 3, 2020, 4:38 PM IST

गोरखपुर: लॉकडाउन के बीच अपनों के पास पहुंचने के लिए लोग हर जतन करने को तैयार हैं. ऐसा ही एक मामला जिले से भी सामने आया है, जहां गाजियाबाद से गोरखपुर तक एक शख्स अपने परिवार को कार से लेकर पहुंच गया. खास बात यह रही कि इस व्यक्ति ने कार लॉकडाउन के दौरान अपनी बची पूंजी से खरीदी है. लॉकडाउन में गाजियाबाद में फंसा युवक भीड़ देखकर परिवार को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लाने की हिम्मत नहीं जुटा सका. वहीं ट्रेन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न होना और संक्रमण के खतरे को देखते हुए शख्स ने पूरी जमा पूंजी लगाकर कार खरीदी और परिवार को लेकर अपने घर के लिए चल दिया.

भरी ट्रेन में संक्रमण का था खतरा
यह शख्स गोरखपुर के पीपीगंज क्षेत्र के कैथोलिया गांव का रहने वाला है, जिसका नाम लल्लन है. लल्लन गाजियाबाद में पेंट-पॉलिश का काम करते हैं. वह पत्नी के साथ गजियाबाद में ही रहते थे. इसी बीच कोरोना महामारी को लेकर लॉकडाउन घोषित हो गया, जिससे उनका काम-काज ठप हो गया. इससे वहां काफी परेशानी होने लगी. लल्लन ने बताया कि किसी तरह 15 अप्रैल तक तो वक्त काट लिया गया, लेकिन उसके बाद से रोजाना यही देखते कि कब बस या ट्रेन सेवा शुरू होगी. बस तो नहीं शुरू हुई, लेकिन तीन मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन शुरू हो गई. स्टेशन पर वे कई बार गए, लेकिन ट्रेन पूरी तरह से ठसाठस भरी रहती थी और भीड़ देखकर हिम्मत नहीं होती थी.

बचाए हुए पैसों से खरीदी कार
लल्लन ने बताया कि इसी बीच सामान्य ट्रेनों के चलने की सूचना मिली. लगातार तीन दिन प्रयास करने के बाद जब कन्फर्म बर्थ नहीं मिली तो वे विकल्प तलाशने लगे और आखिरकार कार खरीदने की सूझी. लल्लन बताते हैं कि तीन साल में 1.90 लाख रुपये बैंक में बचाकर रखे थे. सारा पैसा बैंक से निकाला और 28 मई को कार बाजार से डेढ़ लाख रुपये की सेकंड हैंड कार खरीद ली. कार खरीदने के बाद गोरखपुर आने की तैयारी शुरू कर दी. लगभग 14 घंटे के सफर के बाद वह अपने गांव रामपुर कैथोलिया पहुंच गए. उन्होंने अब निश्चय किया है कि कभी भी अपना गांव छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे और जिले में ही कमाई का जरिया बनाएंगे.

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