गोरखपुरः 1933 में जहां जंगे आजादी के दीवाने अपने खून से सींचकर देश को आजादी दिलाने का कार्य कर रहे थे, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा वादी नीतियों से देश में सुख, समृद्धि और धर्म के प्रचार प्रसार में लगे हुए थे. गीताप्रेस प्रकाशन परिवार धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जहां लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहा था तो वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गीता प्रेस प्रकाशन परिवार के इस कार्यों की सराहना करते हुए सन 1933 में पत्र भेजकर गीता प्रेस प्रकाशन को उनके कार्य के लिए साधुवाद दिया था और कहा था कि यह कार्य आगे चलकर मील का पत्थर साबित होगा.
आध्यात्म से जुड़ने के लिए गीताप्रेस की स्थापना
गीताप्रेस गोरखपुर का इतिहास के प्रचार प्रसार में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है. जहां सन 1933 में देश को आजाद कराने के लिए आजादी के दीवाने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम रहे थे. हर तरफ ब्रिटिश हुकूमत के आक्रांताओ द्वारा खून खराबा और देश को खंडित करने का कार्य किया जा रहा था, वहीं गीता प्रेस के संस्थापक सदस्य रहे भाई जी स्व. हनुमान प्रसाद पोद्दार ने देश में आपसी समरसता, भाईचारा, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ने के लिए गीता प्रेस की स्थापना की और तेजी के साथ लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन की विचारधारा से जोड़ने का कार्य किया.
गांधी जी ने गुजराती में लिखा था पत्र
गीताप्रेस प्रकाशन के इस कार्य को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 में गीता प्रेस प्रकाशन को पत्र लिखकर उनके इस कार्य के लिए साधुवाद दिया और कहा कि यह कार्य देश में एक अलग क्रांति के साथ मील का पत्थर साबित होगा. पत्र गुजराती में था और इस पत्र में वह संदेश लिखा था, जो लोगों को गीता प्रेस प्रकाशन से सीधे-सीधे जोड़ने का कार्य कर रहा था. इस पत्र को तत्कालीन गीता प्रेस प्रकाशन विभाग द्वारा संरक्षित कर आने वाली पीढ़ी को गांधी जी के विचारों से रूबरू कराने के लिए आज भी गीता प्रेस में रखा गया है. इस अमूल्य धरोहर को यहां आने वाले दर्शक देखते और पढ़ते हैं.