गोरखपुर: नवरात्रि के पावन पर्व में देवी दुर्गा की आराधना के साथ-साथ नवमी वाले दिन शास्त्रों में हवन करने का भी विधान है. व्रत और पूजा को संपूर्णता प्रदान करने के लिए हवन किया जाना देवी भागवत में भी अनिवार्य बताया गया है. इस बार नवरात्रि की नवमी तिथि रविवार 6 अक्टूबर को दोपहर के 2 बजकर 15 मिनट से प्रारम्भ हो रही है, जो कि सोमवार 7 अक्टूबर तक 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगी. वहीं चंडू पंचाग के अनुसार 6 अक्टूबर दिन में 10 बजकर 58 मिनट से नवमी तिथि प्रारम्भ होगी, जो कि सोमवार को 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. विद्वानों का मत है कि नवमी तिथि में ही हवन किया जाना चाहिए, जिसके लिए रविवार दिन के 2 बजकर 15 मिनट से सोमवार के 3 बजकर 15 मिनट तक का समय बेहद उपयुक्त है. इसी को लेकर ईटीवी भारत ने ज्योतिषाचार्य डॉ. धनेश मणि से खास बातचीत की.
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ज्योतिषाचार्य धनेश मणि ने दी जानकारी
सुख -समृद्धि के लिए 'आम की लकड़ी' तो लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए 'बेल की लकड़ी' पर हवन करना फलदायी होता है. उन्होंने कहा कि श्रद्धा और समर्पण से मां की आराधना में लीन रहने वाले भक्त संपूर्णता प्रदान करने वाले हवन को पूरी शुद्धता के साथ करें तो निश्चित ही उन्हें विशेष फल की प्राप्ति होती है.
धूप की लकड़ी से नहीं करना चाहिए हवन
ज्योतिषाचार्य डॉ. धनेश मणि ने जानकारी देते हुए बताया कि कभी-कभी लोग हवन सामग्री जिसे 'शाकल्य' कहते हैं, उसे बनाने के लिए तेल, चावल, जौ, घी, गुड़ के साथ ही धूप की लकड़ी का भी प्रयोग हवन करने के लिए करते हैं. जबकि धूप की लकड़ी को स्वाहा के उच्चारण के साथ अग्नि में प्रविष्ट नहीं कराना चाहिए. उन्होंने कहा कि धूप की लकड़ी देवताओं को सुगंध प्राप्त करने वाली लकड़ी मानी गई है. जब अग्नि को प्रज्वलित किया जाए तो उस दौरान ही इस लकड़ी को हवन कुंड में डाल देना चाहिए और हवन सामग्री से आहुति देनी चाहिए.
हवन करने से इच्छित फल की होती है प्राप्ति
ज्योतिषाचार्य धनेश मणि ने बताया कि देवी दुर्गा की आराधना करने के लिए नवरात्रि एक ऐसा काल है, जिसमें हर साधक मां की कृपा प्राप्त करना चाहता है, जिसकी प्राप्ति हवन के साथ ही पूर्ण होती है. उन्होंने कहा कि निश्चित समय, काल और शुद्ध तत्वों के साथ इस कार्य को संपन्न कराया जाए, तो भक्तों को इच्छित फल की प्राप्ति होती है. इससे जहां भक्त मां भगवती को प्रसन्न करता है, तो वहीं सफलतापूर्वक पूर्ण हुई हवन की प्रक्रिया से वह खुद भी आनंदित और प्रसन्न चित्त हो जाता है.