गोरखपुर: पढ़ने-पढ़ाने और लोगों को शिक्षित बनाने के उद्देश्य से पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर में सन 1960 में केंद्रीय लाइब्रेरी स्थापित की गई. यह लाइब्रेरी साइंस के जनक डॉ. एसआर रंगनाथन के सिद्धांतों और नियमों पर काम करती है.
अपनी विशेष शैली, सुंदरता, स्वच्छता और शांति के बेहतर माहौल की वजह से यह लाइब्रेरी सिर्फ रेलवे के कर्मचारियों और उनके परिवार के लोगों को ही पढ़ने-लिखने का मौका नहीं देती, बल्कि जो पढ़ने-लिखने के लिए इच्छुक लोग होते हैं, उनके लिए भी यह पब्लिक लाइब्रेरी के रूप में काम करती है. हालांकि इसके लिए कुछ नियम-शर्तें हैं.
एक क्लिक पर मिलती है किताबों की जानकारी
डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहे पूर्वोत्तर रेलवे की इस लाइब्रेरी के बारे में रेलवे की वेबसाइट पर जाकर लाइब्रेरी सेक्शन में एक क्लिक करते ही पाठक के सामने यहां मौजूद किताबों का विवरण प्रस्तुत हो जाता है. पहले लाइब्रेरी के सदस्य रेलकर्मी ही होते थे, लेकिन अब किसी भी रेलकर्मी के प्रस्ताव पर कोई भी आम व्यक्ति सदस्य बन सकता है.
लाइब्रेरी एक विशाल क्षेत्रफल में स्थापित है और पूर्व के समय में यह काफी समृद्ध हुआ करती थी. पहले यहां पर कुल 27 लोगों का स्टाफ कार्यरत था, लेकिन मौजूदा समय में इनकी संख्या भी घटकर महज 9 ही रह गई है, जिनमें से 2-3 तो इसी वर्ष रिटायर हो जाएंगे.
अलग-अलग रखी जाती है हिंदी और अंग्रेजी की किताबें
लाइब्रेरी असिस्टेंट नीलम वर्मा यहां की सुविधाओं के बारे में खुलकर जिक्र करते हुए बताती हैं कि जो सुविधा यहां नहीं है, उसे लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. बावजूद इसके यह लाइब्रेरी, लाइब्रेरी के जनक के निर्धारित सिद्धांतों के हिसाब से संचालित होती है, जहां अंग्रेजी और हिंदी की किताबें अलग-अलग रखी जाती हैं, जिसके चलते पाठकों को काफी सुविधा रहती है.