जानकारी देते क्राइस्ट चर्च के पादरी फादर रेवेंड डीआर लाल गोरखपुरः शहर के ईसाई कब्रिस्तानों में शवों को दफनाने के लिए जगह की कमी पड़ गई है. इसके बाद चर्च के पादरी ने एक नई व्यवस्था बनाई है. उन्होंने अपने समाज के लोगों से अपील की है कि जिनके भी परिवार के सदस्यों की उनकी कब्र बनाई गई है. वह उन्हीं कब्रों की खुदाई करके पूर्व के शव के ऊपर एक स्लैप डालकर मिट्टी डाल दें. इसके बाद कब्र को नए सिरे से गहराई तक खोदें. भविष्य में अगर परिवार में किसी और की मृत्यु होती है, तो उसी कब्र को खोदकर मिट्टी हटाकर नए शव को दफनाया जा सके. उस पर भी स्लैप डालकर मिट्टी डाल दी जाएगी. उन्होंने कहा कि शासन की मंशा है कि अब नई कब्रिस्तान नहीं बनाई जाएगी. इसलिए जो पुरानी कब्र की जगह है, उसी के अनुकूल व्यवस्था बनाना मजबूरी है.
शास्त्री चौक स्थित क्राइस्ट चर्च के पादरी फादर रेवेंड डीआर लाल ने कहा कि पहले जब जगह हुआ करती थी, तो पति- पत्नी और प्रेमी-प्रेमिका को मृत्यु के बाद अगल-बगल शव दफनाने की सुविधा दी गई थी. अब ऐसा कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि जगह की कमी है. शहर के पैडलेगंज चौक पर स्थित सेंट जॉन कब्रिस्तान करीब 300 साल पुराना है. यहां पर ईसाई समाज के लोगों को मृत्यु के बाद दफनाया जाता है. यहां मौजूदा समय में कब्र बनाने की जगह नहीं बची है.
बताया जाता है कि जब देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था, तो उस दौरान भी मृत अंग्रेजों की करीब डेढ़ सौ कब्र यहां पर स्थापित है. इसकी देखभाल भी एक हिंदू परिवार करता है. लेकिन अब जब नई जगह कब्र के लिए नहीं मिल पा रही है. ऐसे में चर्च के पादरी ने समिति के माध्यम से समाज में इस व्यवस्था को बनाने का निर्णय ले लिया है. गोरखपुर में करीब 200 परिवार ईसाई समाज के रहते हैं. जिनका अधिकांश निवास क्षेत्र बशारतपुर एरिया है. वहां भी सेंट जॉन चर्च स्थापित है. इसके अलावा शहर में छोटी बड़ी आधा दर्जन से अधिक चर्च है. यहां पर नित्य प्रति समाज के लोग प्रार्थना पूजा करते हैं.
क्राइस्ट चर्च के पादरी फादर रेवेंड डीआर लाल कहते हैं कि मृत्यु के उपरांत जगह की भी व्यवस्था न हो पाना दुखद है. लेकिन उसका हल ढूंढना भी उन्हीं लोगों का काम है. यही वजह है कि कोई नई व्यवस्था बने या न बने लेकिन, जो पहले की व्यवस्था है और स्थान उपलब्ध है, उसी में सब व्यवस्थित करना है. कब्रिस्तान की मरम्मत के लिए शव को दफन करने वालों से मामूली शुल्क लिया जाता है. इसके अलावा समाज के लोग भी मदद करते हैं. उन्होंने कहा कि जब कब्रिस्तान में दफन शव के परिजन अपनी-अपनी कब्र की गहराई बढ़ाते जाएंगे, तो निश्चित रूप से कुछ जगहों को बढ़ा पाने में या फिर नए शव को दफन कराने में आसानी होगी.
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