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शरद पूर्णिमा पर आज आसमान से बरसेगा अमृत

आज शरद पूर्णिमा के अवसर पर धवल चांदनी में आसमान से अमृतवर्षा होगी. अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. जानिये, इस दिन का महत्व...

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शरद पूर्णिमा की तिथि 2020

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Published : Oct 30, 2020, 12:50 PM IST

गोरखपुर: आज शरद पूर्णिमा का पर्व है. ऐसा माना जाता है कि, आज के दिन धवल चांदनी में आकाश से अमृत की वर्षा होती है. जिसकी वजह से आज के दिन को आरोग्य का दिन भी कहा जाता है. ऐसे में इस दिन का काफी महत्व है.

ज्योतिषाचार्य शरद चंद मिश्र का कहना है कि, आज शुक्रवार की रात आसमान से अमृत बरसेगा. उनका कहना है कि आज शरद पूर्णिमा का दिन बहुत शुभ है. आज चंद्रमा मेष राशि में रहेगा और श्रीवत्स नामक अत्यन्त शुभदायक महाऔदायिक योग भी है. इस ॠतु में सर्वत्र आकाश निर्मेश हो जाता है. शीतल मन्द हवा बहने लगती है. चंद्रमा सोलह कला से युक्त हो जाता है और उसकी चांदनी में अमृत का निवास हो जाता है, इसलिए उसकी किरणों से अमृत्व और आरोग्य की प्राप्ति होती है.

आज के दिन कैसे करें पूजा
इसके साथ ज्योतिषचार्य शरद चंद्र मिश्र ने कहा कि कृत्य निर्णय में कहा गया है कि शरद पूर्णिमा को ऐरावत पर आरूढ़ इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन कर उपवास करें. रात में घृतपूरित और गन्ध-पुष्प से सूपूजित यथा संख्या दीप प्रज्वलित कर देवमन्दिरों, बाग-बगीचों, तुलसी-मकान के छत पर रखें. साथ ही प्रातः काल होने पर इन्द्र की पूजा करें. ब्राह्मणों को शक्कर मिश्रित खीर का भोजन कराकर वस्त्रादि-दक्षिणा दें, इससे अनन्त फल मिलता है. रात में चंद्रमा जब आकाश के मध्य पहुंच जाए तब उसकी पूजा करें और उसे अर्घ्य दें.

इस दिन क्या करें
इस दिन प्रातः काल अपने आराध्य देव को सुन्दर वस्त्राभूषण से सुसज्जित करें और शास्त्रोक्त षोडशोपचार विधि से पूजन करें. अर्धरात्रि के समय भगवान को गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर, रसोई में बनी पूरियों के साथ भगवान को भोग लगायें. खीर से भरे पात्र को रात को खुली चांदनी में रख दें, इसमें रात्रि के समय चंद्र किरणों से अमृत गिरता है. प्रातःकाल खीर का प्रसाद सबको दें और स्वयं ग्रहण करें.

इस दिन पूर्णिमा का व्रत करके और कथा सुनकर चंद्रमा को अर्घ्य भी दें. विवाह होने के बाद पूर्णिमा के व्रत का नियम, शरद पूर्णिमा से आरम्भ करना चाहिए. इस दिन रोजगार पूजा भी की जाती है. तेरह पूर्णिमा का व्रत करने के बाद उद्यापन किया जाता है. ब्रज क्षेत्र में यह त्योहार बड़े उत्साह के रूप में मनाया जाता है. यह पूर्णिमा महारास पूर्णिमा के नाम से भी विख्यात है. भगवान श्रीकृष्ण ने इस पूर्णिमा की रात में गोपियों के साथ महारास का आयोजन किया था.

शरद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण व्रत करें और उनकी व्रत कथा का श्रवण करें. रोजगार व्रत इसी पूर्णिमा को होता है. प्राचीन संस्कृत नाटक और काव्यों में, जो कुमुद महोत्सव का उल्लेख मिलता है, वह इसी दिन होता है. आज के दिन धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी की पूजा की जाती है.

आज के दिन पूजा करने के नियम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रातः काल स्नान के बाद व्रत का मानसिक संकल्प लें. दिन भर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का जप और चिन्तन करें. सायंकाल आने के बाद पुनः स्नान करके महालक्ष्मी की पूजा के लिए संकल्प करें-"मम समस्त दुःख विनाश पूर्वक विपुल धन-धान्यादि सौभाग्यादि प्राप्त्यर्थं कोजागरो शरद् पूर्णिमा निमित्तकं श्री महालक्ष्म्याःसिंह पूजनं करिष्ये". ऐसा संकल्प कर महालक्ष्मी की पूजा करें.

विभिन्न प्रकार के भोग लगावें. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें. रात भर भजन-कीर्तन करते हुए महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें. पाठ की पूर्णता के बाद उसका दशांश हवन-कमलगट्टा, बेल, पंचमेवा, विविध प्रकार के फल और खीर आदि से करें. इस दिन जागरण का विशेष महत्व है, क्योंकि महालक्ष्मी रात-भर भूलो में सभी घरों मे जाती हैं. इस दौरान जो जागता है, उसे वर्ष भर के लिए धन-सम्पत्ति देती हैं. इस रात में द्युतक्रीणा का भी विधान है.

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