गोरखपुर: टेराकोटा का नाम सुनते ही मिट्टी के बने हुए नक्काशी दार घोड़ा, हाथी और मिट्टी के सजावट के सामान नजर के सामने आ जाते हैं. टेराकोटा ने देश और विदेश में लोगों के ड्राइंग रूम समेत होटल और बड़े रेस्तरां में अपनी एक अलग जगह बना ली है, लेकिन लाल गेरुआ रंग के मिट्टी के सजावट के खूबसूरत सामान में अगर रंग-बिरंगे रंग के साथ जरी, गोटे और मोतियों से सजा दिया जाए तो मानो इन मूर्तियों में जान ही आ जाती है.
ऐसा ही अभिनव प्रयोग किया है, शहर की जानी मानी चित्रकार कल्याणी कृति सिंह ने. उन्होंने न सिर्फ टेराकोटा और दिवाली के दीपों को अलग पहचान दी है, बल्कि जरूरतमंद महिलाओं को अपने साथ जोड़ कर उन्हें रोजगार भी दिया है.
गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज रोड के धर्मपुर की रहने वाली कल्याणी कृति सिंह पेशे से चित्रकार रही हैं. उन्हें पेंटिंग बनाने का शौक है, वहीं उनके पति बैंक में नौकरी करते हैं. वह बताती हैं कि 10 से 12 साल पहले तक वह सिर्फ चित्रकारी का शौक रखती थी. उनकी पहचान भी उसी से रही है. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह टेराकोटा में अभिनव प्रयोग कर उसे एक अलग पहचान दे पाएंगी.
इसे भी पढ़ें- अयोध्या दीपोत्सव: 4 लाख 1 हजार दीपों का बना विश्व रिकॉर्ड, टूटा पुराना रिकॉर्ड
कल्याणी कृति सिंह बताती है कि उनके पति उनका काफी सपोर्ट करते हैं. कृति सिंह डिमांड के हिसाब से दिन और कभी देर रात तक काम करती हैं. उनके पति ने आर्थिक और हर तरह से उनकी मदद की है. एक दिन मिट्टी के खिलौने को देखते-देखते उनके मन में ख्याल आया कि वह टेराकोटा को नया रूप दे.
उन्होंने पहले टेराकोटा के बने सील को अलग-अलग रंग देना शुरू किया, उसके बाद उन्होंने उसमें जरी, गोटे और मोती का प्रयोग भी शुरू कर दिया. बाद में जरूरत के हिसाब से देवी-देवताओं की मूर्तियों में कपड़े पहनाकर उन्हें और सुंदर बनाने लगी. उनके प्रोडक्ट कि जब डिमांड बढ़ने लगी तो उन्होंने इन मूर्तियों को गोरखपुर के अलावा कोलकाता और अन्य शहरों से भी मंगवाना शुरू कर दिया.