गोरखपुर:चौरी-चौरा तहसील क्षेत्र में वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लागू लॉकडाउन ने आम जनजीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है. इसकी सबसे अधिक मार उस वर्ग पर पड़ी है, जिसके ऊपर देश का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी है. लॉकडाउन में महानगरों से गांव में वापस लौटे मजदूर और कामगारों को उनकी स्किल और योग्यता की स्कैनिंग करने के बाद योगी सरकार ने रोजगार देने का वायदा किया है. लेकिन, वायदे की हकीकत की पड़ताल करने पर पता चला कि वापस लौटे कामगारों के साथ पढ़े-लिखे युवा भी शामिल हैं, जो मनरेगा में 201 रुपये की दिहाड़ी में भीषण गर्मी में छह घंटे काम करने के लिए मजबूर हैं.
मनरेगा के तहत मजदूरों को दिया जा रहा काम
चौरी-चौरा तहसील के बालखुर्द पहाड़पुर गांव में मनरेगा के तहत काम चल रहा है. यहां मजदूर तालाब को गहरा करने के साथ तटबंध बना रहे हैं, जिससे बरसात में तालाब का पानी खेतों में न जाने पाए. सुबह 6 बजे से 10 बजे और दोपहर तीन बजे से पांच बजे तक मजदूर खूब मेहनत कर रहे हैं. यहां पर 50 से 60 की संख्या में मजदूर लगे हैं. इसमें आईटीआई और ग्रेजुएशन किए युवा भी शामिल हैं. कुछ ऐसे भी युवा मिले, जो प्रवासी हैं. लॉकडाउन की वजह से गांव लौटे और अभी वापस नहीं जा पाए हैं. यही वजह है कि वे 201 रुपये की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं.
201 रुपये में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल
सरदार नगर ब्लॉक के पहाड़पुर गांव के बालखुर्द टोला के रहने वाले जयहिंद ने बताया कि वो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हैं. पुणे में पेंट-पालिश का काम करता था. 15-16 हजार रुपये महीना कमा लेता था. यहां पर मनरेगा में काम कर रहे हैं. दिहाड़ी 201 रुपये में परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल है. घर में माता-पिता और भाई भी हैं.
बबलू पासवान बड़ौदा, गुजरात में पेंट पालिश का काम करते थे. परिवार में पत्नी और दो बच्चे अंकित और अजीत हैं. वे 9वीं पास हैं. गांव में मनरेगा में काम कर रहे हैं. बड़ौदा में 500 से 600 रुपये कमा लेते थे. उन्होंने बताया कि यहां पर 201 रुपये में खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है. वो वापस गुजरात जाएंगे.